तंत्र-सूत्र–विधि–40 (ओशो)

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ध्‍वनि-संबंधी चौथी विधि:

‘’किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागों।‘’

कभी-कभी गुरूओं ने इस विधि का खूब उपयोग किया है। और उनके अपने नए-नए ढंग है। उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी झेन गुरु के झोंपड़े पर जाओ तो वह अचानक एक चीख मारेगा और उससे तुम चौंक उठोगे। लेकिन अगर तुम खोजोंगे तो तुम्‍हें पता चलेगा कि वह तुम्‍हें महज जगाने के लिए ऐसा कर रहा है। कोई भी आकस्मिक बात जगाती है। वह आकस्‍मिकता तुम्‍हारी नींद तोड़ देती है।

सामान्‍य: हम सोए रहते है। जब तक कुछ गड़बड़ी न हो, हम नींद से नहीं जागते। नींद में ही हम चलते है; नींद में ही हम काम करते है। यही कारण है कि हमे अपने सोए होने का पता नहीं चलता। तुम दफ्तर जाते हो, तुम गाड़ी चलाते हो। तुम लौटकर घर आते हो और अपने बच्‍चों को दुलार करते हो। तुम अपनी पत्‍नी से बातचीत करते हो। यह सब करने से तुम सोचते हो कि मैं बिलकुल जागा हुआ हूं। तुम सोचते हो कि मैं सोया-सोया ये काम कैसे कर सकता हूं।

लेकिन क्‍या तुम जानते हो कि ऐसे लोग है जो नींद में चलते है? क्‍या तुम्‍हें नींद में चलने वालों के बारे में कछ खबर है।

नींद में चलने वालों की आंखें खुली होती है। और वे सोए रहते है। और उसी हालत में वे अनेक काम कर गुजरते है। लेकिन दूसरी सुबह उन्‍हें याद भी नहीं रहता कि नींद में मैंने क्‍या-क्‍या किया। वे यहां तक कर सकते है कि दूसरे दिन थाने चले जाएं और रपट दर्ज कराए कि कोई व्‍यक्‍ति रात उनके घर आया था और उपद्रव कर रहा था। और बाद में पता चलता है कि यह सारा उपद्रव उन्‍होंने ही किया था। वे ही रात में सोए-सोए उठ आते है। चलते-फिरते है, काम कर गुजरते है; फिर जाकर बिस्‍तर में सो जाते है। अगली सुबह उन्‍हें बिलकुल याद नहीं रहता कि क्‍या-क्‍या हुआ। वे नींद में दरवाजे तक खोल लेते है, चाबी से ताले तक खोलते है; वे अनेक काम कर गुजरते है। उनकी आंखें खुली रहती है। और वे नींद में होते है।

किसी गहरे अर्थ में हम सब नींद में चलने वाले है। तुम अपने दफ्तर जा सकते हो। तुम लौट कर आ सकते हो, तुम अनेक काम कर सकते हो। तुम वही-वही बात दोहराते रह सकते हो। तुम अपनी पत्‍नी को कहोगे कि मैं तुम्‍हें प्रेम करता हूं; और इस कहने में कुछ मतलब नहीं होगा। शब्‍द मात्र यांत्रिक होंगे। तुम्‍हें इसका बोध भी नहीं रहेगा। कि तुम अपनी पत्‍नी से कहते हो कि मैं तुम्‍हें प्रेम करता हूं। जाग्रत पुरूष के लिए ये सारा जगत नींद में चलने वालों का जगत है।

यह नींद टूट सकती है। उसके लिए कुछ विधियों का प्रयोग करना होगा।

यह विधि कहती है: ‘’किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागों।‘’

किसी ध्‍वनि, किसी अक्षर के साथ प्रयोग करो। उदाहरण के लिए, ओम के साथ ही प्रयोग करो। उसके आरंभ में ही जागों, जब तुमने ध्‍वनि निर्मित नहीं की। या जब ध्‍वनि निर्ध्‍वनि में प्रवेश करे, तब जागों। ये कैसे करोगे?

किसी मंदिर में चले जाओ। वहां घंटा होगा या घंटी होगी। घंटे को हाथ में ले लो और रुको। पहले पूरी तरह से सजग हो जाओ। ध्‍वनि होने वाली है और तुम्‍हें उसका आरंभ नहीं चूकना है। पहले तो समग्ररूपेण सजग हो जाओ—मानो इस पर ही तुम्‍हारी जिंदगी निर्भर है। ऐसा समझो कि अभी कोई तुम्‍हारी हत्‍या करने जा रहा है। और तुम्‍हें सावधान रहना है। ऐसी सावधान रहो—मानों कि यह तुम्‍हारी मृत्‍यु बनने वाली है।

और यदि तुम्‍हारे मन में कोई विचार चल रहा हो तो अभी रुको; क्‍योंकि विचार नींद है। विचार के रहे तुम सजग नहीं हो सकते। और जब तुम सजग होते हो तो विचार नहीं रहता है। रुको। जब लगे कि अब मन निर्विचार हो गया, कि अब मन में कोई विचार नहीं है। सब बादल छंट गये है। तब ध्‍वनि के साथ गति करो।

पहले जब ध्‍वनि नहीं है। तब उस पर ध्‍यान दो। और फिर आंखें बंद कर लो। और जब ध्‍वनि हो, घंटा बजे, तब ध्‍वनि के साथ गति करो। ध्‍वनि धीमी से धीमी, सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म होती जायेगी और फिर खो जाएगी। इस ध्‍वनि के साथ यात्रा करो। सजग और सावधान रहो। ध्‍वनि के साथ उसके अंत तक यात्रा करो। उसके दोनों छोरों को, आरंभ और अंत को देखो।

पहले किसी बाहरी ध्‍वनि के साथ, घंटा या घंटी के साथ प्रयोग करो। फिर आँख बंद करके भीतर किसी अक्षर का, ओम या किसी अन्‍या अक्षर का उच्‍चार करो। उसके साथ वही प्रयोग करो। यह कठिन होगा। इसीलिए हम पहले बाहर की ध्‍वनि के साथ प्रयोग करते है। जब बाहर करने में सक्षम हो जाओगे तो भीतर करना भी आसान होगा। तब भीतर करो। उस क्षण को प्रतीक्षा करो जब मन खाली हो जाए। और फिर भीतर ध्‍वनि निर्मित करो। उसे अनुभव करो, उसके साथ गति करो, जब तक वह बिलकुल न खो जाए।

इस प्रयोग को करने में समय लगेगा। कुछ महीने लग जाएंगे कम से कम तीन महीने। तीन महीनों में तुम बहुत ज्‍यादा सजग हो जाओगे। अधिकाधिक जागरूक हो जाओगे। ध्‍वनि पूर्व अवस्‍थ और ध्‍वनि के बाद की अवस्‍था का निरीक्षण करना है। कुछ भी नहीं चूकना है। और जब तुम इतने सजग हो जाओ कि ध्‍वनि के आदि और अंत को देख सको तो इस प्रक्रिया के द्वारा तुम बिलकुल भिन्न व्‍यक्‍ति हो जाओगे।

कभी-कभी यह अविश्‍वसनीय सा लगता है कि ऐसी सरल विधियों से रूपांतरण कैसे हो सकता है। आदमी इतना अशांत है। दुःखी और संतप्‍त है। और ये विधियां इतनी सरल मालूम देती है। ये विधियां धोखाधड़ी जैसी लगती है। अगर तुम कृष्‍ण मूर्ति के पास जाओ और उनसे कहो कि यह एक विधि है तो कहेंगे कि यह एक मानसिक धोखाधड़ी है। इसके धोखे में मत पड़ो। इसे भूल जाओ। इसे छोड़ो। देखने पर तो वह ऐसी ही लगती है। धोखे जैसी लगती है। ऐसी सरल विधियों से तुम रूपांतरित कैसे हो सकते हो।

लेकिन तुम्‍हें पता नहीं है। वे सरल नहीं है। तुम जब उनका प्रयोग करोगे तब पता चलेगा कि वे कितनी कठिन है। मुझसे उनके बारे में सुनकर तुम्‍हें लगता है कि वे सरल है। अगर मैं तुमसे कहूं कि यह जहर है और उसकी एक बूंद से तुम मर जाओगे। और अगर तुम जहर के बारे में कुछ नहीं जानते हो कि तुम कहोगे; ‘’आप भी क्‍या बात करते है? बस, एक बूंद और मेरे सरीखा स्‍वस्‍थ और शक्‍तिशाली आदमी मर जाएगा। अगर तुम्‍हें जहर के संबंध में कुछ नहीं पता है तो ही तुम ऐसा कह सकते हो। यदि तुम्‍हें कुछ पता है तो नहीं कह सकते।

यह बहुत सरल मालूम पड़ता है: किसी ध्‍वनि का उच्‍चार करो और फिर उसके आरंभ और अंत के प्रति बोधपूर्ण हो जाओ। लेकिन यह बोधपूर्ण होना बहुत कठिन बात है। जब तुम प्रयोग करोगे तब पता चलेगा। कि यह बच्‍चों का खेल नहीं है। तुम बोधपूर्ण नहीं हो। जब तुम इस विधि को प्रयोग करोगे तो पहली बार तुम्‍हें पता चलेगा कि मैं आजीवन सोया-सोया रहा हूं अभी तो तुम समझते हो कि मैं जागा हुआ हूं, सजग हूं।

इसका प्रयोग करो, किसी भी छोटी चीज के साथ प्रयोग करो। अपने को कहो कि में लगातार दस श्‍वासों के प्रति सजग रहूंगा, बोधपूर्ण रहूंगा। और फिर श्‍वासों की गिनती करो। सिर्फ दस श्‍वासों की बात है। अपने को कहो कि मैं सजग रहूंगा और एक से दस तक गिनुंगा आती श्‍वासों को, जाती श्‍वासों को, दस श्‍वासों को सजग रहकर गिनुंगा।

तुम चूक-चूक जाओगे। दो या तीन श्‍वासों के बाद तुम्‍हारा अवधान और कहीं चला जाएगा। तब तुम्‍हें अचानक होश आएगा कि मैं चूक गया हूं, मैं श्‍वासों को गिनना भूल गया। या अगर गिन भी लोगे तो दस तक गिनने के बाद पता चलेगा कि मैंने बेहोशी में गिनी, मैं जागरूक नहीं रहा।

सजगता अत्‍यंत कठिन बात है। ऐसा मत सोचो कि ये उपाय सरल है विधि जो भी हो। सजगता साधनी है। उसे बोध पूर्वक करना है। बाकी चीजें सिर्फ सहयोगी है। और तुम अपनी विधियां स्‍वयं भी निर्मित कर सकते हो। लेकिन एक चीज सदा याद रखने जैसी है कि सजगता बनी रहे। नींद में तुम कुछ भी कर सकते हो; उसमे कोई समस्‍या नहीं है। समस्‍या तो तब खड़ी होती है जब यह शर्त लगायी जाती है कि इसे होश से करो, बोध पूर्वक करो।

(इस ध्‍यान को अति सुंदर और विकसित कर ओशो ने कुंडलिनी ध्‍यान बनाया है। उसमें दो चरण ओशो ने और जोड़ दिये, पहले तो उर्जा को जगाओं, और फिर नृत्‍य कर उर्जा का प्रफुलित कर के फैलने दो, केवल आनंदित उर्जा का एक पुंज आपको घेरे रहे। तब तुम अति ऊर्जा से लबरेज हो, फिर सुनो संगीत को….ओर वह भी छम-छम अविरल बहते संगीत को आदि से अंत से अनेक……वाद्य की ध्‍वनियों के साथ ‘’स्‍वामी दूतर’’ द्वारा तैयार किया संगीत)

ओशो

विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—2

प्रवचन—27

साभार:-(oshosatsang.org)

तंत्र-सूत्र–विधि–04 (ओशो)

Shiv-Tantra

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या जब श्‍वास पूरी तरह बाहर गई है और स्‍वय: ठहरी है, या पूरी तरह भीतर आई है और ठहरी है—ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्‍यक्‍ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है।

लेकिन तब तो यह विधि सब के लिए कठिन है, क्‍योंकि शिव कहते है कि ‘’केवल अशुद्ध के लिए कठिन है।‘’

लेकिन कौन शुद्ध है? तुम्‍हारे लिए यह कठिन है; तुम इसका अभ्‍यास नहीं कर सकते। लेकिन कभी अचानक इसका अनुभव तुम्‍हें हो सकता है। तुम कार चला रहे हो और अचानक तुम्‍हें लगता है कि दुर्धटना होने जा रही है। श्‍वास बंद हो जाएगी। अगर वह बाहर है तो बाहर ही रह जाएगी। और भी अगर वह भीतर है तो वह भीतर ही रह जायेगी। ऐसे संकट काल में तुम श्‍वास नहीं ले सकते: तुम्‍हारे बस में नहीं है। सब कुछ ठहर जाता है। विदा हो जाता है।

‘’या जब श्‍वास पूरी तरह बाहर गई है और स्‍वत: ठहरी है, या पूरी तरह भीतर आई है और ठहरी है—ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्‍यक्‍ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है।‘’

तुम्‍हारा क्षुद्र अहंकार दैनिक उपयोगिता की चीज है। संकट की घड़ी में तुम उसे नहीं याद रख सकते। तुम जो भी हो, नाम बैंक बैलेंस, प्रतिष्‍ठा, सब काफूर हो जाता है। तुम्‍हारी कार दूसरी कार से टकराने जा रही है। एक क्षण, और मृत्‍यु हो जाएगी। इस क्षण में एक विराम होगा, अशुद्ध के लिए भी विराम होगा। ऐसे क्षण में अचानक श्‍वास बंद हो जाती है। और उस क्षण में अगर तुम बोधपूर्ण हो सके तो तुम उपलब्‍ध हो जाओगे।

जापान में झेन संतों ने इस विधि का बहुत उपयोग किया। इसीलिए उनके उपाय अनूठे है। बेतुके और चकित करने वाले होते है। उन्‍होंने बहुत से ऐसे काम किए है जिन्‍हें तुम सोच भी नहीं सकते। एक गुरु किसी को घर के बाहर फेंक देगा। अचानक और अकारण गुरु शिष्‍य को चांटा मारने लग जायेगा। तुम गुरु के साथ बैठे थे। और अभी तक सब कुछ ठीक था। तुम गपशप कर रहे थे। और वह तुम्‍हें मारने लगा ताकि विराम पैदा हो।

अगर गुरु सकारण ऐसा करे तो विराम नहीं पैदा होगा। अगर तुमने गुरु को गाली दी होती और गुरु तुम्‍हें पीटता तो पीटना सकारण होता है। तुम्‍हारा मन समझ जाता कि मेरी गाली के लिए मुझे मार लगी। असल में तुम्‍हारा मन उसकी अपेक्षा करता। इसलिए विराम नहीं पैदा होगा। लेकिन याद रहे, झेन गुरु गाली देने पर तुम्‍हें नहीं मारेगा। वह हंसेगा, क्‍योंकि तब हंसी विराम पैदा कर सकती है। तुम गाली दे रहे थे, अनाप-शनाप बक रहे थे, और क्रोध का इंतजार कर रहे थे। लेकिन गुरु हंसना या नाचना गुरु कर देता है। यह अचानक है और इससे विराम पैदा होगा। तुम उसे नहीं समझ पाओगे। और अगर नहीं समझ सके तो मन ठहर जाएगा। और जब मन ठहरता है तो श्‍वास भी ठहर जाती है।

दोनों ढंग से घटना घटती है। अगर श्‍वास रूक जाती है। या अगर मन रुकता है तो श्‍वास रूक जाती है। तुम गुरु की प्रशंसा कर रहे थे, तुम अच्‍छी मुद्रा में थे और सोचते थे कि गुरु प्रसन्‍न ही होगा। और गुरु अचानक डंडा उठा लेता है और तुम्‍हें मारने लगता है, वह भी बेरहमी से, क्‍योंकि झेन गुरु बेरहम होते है। वह तुम्‍हें पीटने लगता है और तुम समझ नहीं पाते हो कि क्‍या हो रहा है। उस क्षण मन ठहर जाता है, विराम घटित होता है। और अगर तुम्‍हें विधि मालूम है तो तुम आत्‍मोपलब्‍ध हो सकते हो।

अनेक कथाएं है कि कोई बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हो गया जब गुरू अचानक उसे मारने लगा था। तुम नहीं समझोगे। क्‍या नासमझी है। किसी से पीटने पर या खिड़की से बाहर फेंक दिए जाने पर कोई बुद्धत्‍व को कैसे उपलब्‍ध हो सकता है। अगर तुम्‍हें कोई मार भी डाले तो भी तुम बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध नहीं हो सकते। लेकिन अगर इस विधि को तुम समझते हो तो इस तरह की घटनाओं को समझना आसान होगा।

पश्‍चिम में पिछले तीस-चालीस वर्षों के दरम्‍यान झेन बहुत फैला है। फैशन की तरह। लेकिन जब तक वे इस विधि को नहीं जानेंगे, वे झेन को नहीं समझ सकते है। वह इसका अनुकरण कर सकते है, लेकिन अनुकरण किसी काम का नहीं होता है। बल्‍कि वह खतरनाक है। यह चीज अनुकरण करने की नहीं है।

समूची झेन विधि शिव की चौथी विधि पर आधारित है। लेकिन कैसे दुर्भाग्‍य कि अब हमें जापान से झेन का आयात करना होगा; क्‍योंकि हमने पूरी परंपरा खो दी है। हम उसे नहीं जानते। शिव इस विधि के बेजोड़ विशेषज्ञ थे। जब वे अपनी बरात लेकर देवी को ब्याहने पहुंचे थे, समूचे नगर ने विराम अनुभव किया होगा।

देवी के पिता अपनी बेटी को इस हिप्‍पी के साथ ब्‍याहने को बिलकुल राज़ी नहीं थे। शिव मौलिक हिप्‍पी थे। देवी के पिता उनके बिलकुल खिलाफ थे। कोई भी पिता ऐसे विवाह की अनुमति नहीं दे सकता है। इसलिए हम देवी के पिता के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते। कौन पिता शिव से विवाह की अनुमति देगा? और तब देवी हठ कर बैठी। और उन्‍हें अनिच्‍छा से , खेद पूर्वक अनुमति देनी पड़ी।

और फिर बरात आई। कहा जाता है कि शिव और उनकी बरात देखकर लोग भागने लगे। समूची बराम मानो एल. एस. डी. मारीजुआना, भाँग और गांजा जैसी चीजें खाकर आये थे। लोग नशे में चूर थे। सच तो यह है कि एल. एस. डी. और मारीजुआना आरंभिक चीजें है। शिव और उनके दोस्‍तों और शिष्‍यों को उस परम मनोमद्य का पता था जिसे वह सोमरस कहते थे। अल्डुअस हक्‍सले ने शिव के कारण‍ ही परम मनोमद्य को सोमा नाम दिया है। वे मतवाले थे, नाचते थे, गाते थे, चीखते-चिल्‍लाते थे। समूचा नगर भाग खड़ा हुआ। अवश्‍य ही विराम का अनुभव हुआ होगा।

अशुद्ध के लिए कोई भी आकस्‍मिक, अप्रत्‍याशित, अविश्वसनीय चीज विराम पैदा कर सकती है। लेकिन शुद्ध के लिए ऐसी चीजों की जरूरत नहीं है। शुद्ध के लिए तो हमेशा विराम उपलब्‍ध है। विराम ही विराम है। कई बार शुद्ध चित के लिए श्‍वास अपने आप ही रूक जाती है। अगर तुम्‍हारा चित शुद्ध है—शुद्ध का अर्थ। है कि तुम किसी चीज की चाहना नहीं करते, किसी के पीछे भागते नहीं—मौन और शुद्ध है, सरल और शुद्ध है, तो तुम बैठे रहोगे और अचानक तुम्‍हारी श्‍वास रूक जाएगी।

याद रखो कि मन की गति के लिए श्‍वास की गति आवश्‍यक है; मन के तेज चलने के लिए श्‍वास का तेज चलना आवश्‍यक है। यही कारण है कि जब तुम क्रोध में होते हो तो तुम्‍हारी श्‍वास तेज चलती है। और यही कारण है कि आयुर्वेद में कहा गया है कि मैथुन अतिशय होगा तो तुम्‍हारी आयु कम हो जायेगी। आयुर्वेद श्‍वास से आयु का हिसाब रखता है। अगर तुम्‍हारी श्‍वास-क्रिया बहुत तीव्र है तो तुम चिरायु नहीं हो सकते।

आधुनिक चिकित्‍सा कहती है कि काम भोग रक्‍त प्रवाह में और विश्राम में जाने में सहयोगी होता है। और जो लोग कामवासना का दमन करते है, वे मुसीबत में पड़ते है। खासकर ह्रदय रोग के शिकार होते है।

आधुनिक चिकित्‍सा ठीक कहती है। अपनी-अपनी जगह आयुर्वेद भी सही है और आधुनिक चिकित्‍सा भी; यद्यपि दोनों परस्‍पर विरोधी मालूम होते है।

आयुर्वेद का आविष्‍कार आज से पाँच हजार साल पहल हुआ था। तब आदमी काफी श्रम करता था; जीवन ही श्रम था। इसलिए विश्राम की जरूरत नहीं थी। और रक्‍त प्रवाह के लिए कृत्रिम उपायों की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन अब जिन लोगों को बहुत शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता है उनके लिए काम भोग ही श्रम है।

इसलिए आधुनिक आदमी के बाबत आधुनिक चिकित्‍सा सही है। वह शारीरिक श्रम नहीं करता है, उनके लिए काम भोग श्रम है। काम मे उसकी ह्रदय की धड़कन तेज हो जाती है, उसका रक्‍त प्रवाह बढ़ जाता है और उसकी श्‍वास क्रिया गहरी होकर केंद्र तक पहुंच जाती है। इसलिए संभोग के बाद तुम शिथिल अनुभव करते हो और आसानी से नींद में उतर जाते हो। फ्रायड कहता है कि संभोग सबसे बढ़िया नींद की दवा है। ट्रैंक्विलाइजर है। और आधुनिक आदमी के लिए फ्रायड सही भी है।

काम भोग में क्रोध में श्‍वास क्रिया तेज हो जाती है। काम भोग में मन वासना से, लोग से अशुद्धियों से भरा होता है। जब मन शुद्ध होता है, मन में कोई वासना नहीं होती है, कोई चाह, कोई दौड़ कोई प्रयोजन नहीं होता है, तुम कहीं जा नहीं रहे होते हो, तुम निर्दोष जलाशय की तरह अभी और यहीं ठहरे हुए होते हो, कोई लहर भी नहीं होती है। तब श्‍वास अपने आप ही ठहर जाती है—अकारण।

इस मार्ग पर क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। और तुम उच्‍चात्‍मा को, परमात्‍मा को उपलब्‍ध हो जाते हो।

ओशो

विज्ञान भैरव तंत्र

(तंत्र-सूत्र—भाग-1)

प्रवचन-2

साभार:-(oshosatsang.org)