सर्दियों में अंजीर खाना है लाभकारी

अंजीर
अंजीर एक ऐसा फल है जिसका उत्पादन मनुष्य द्वारा बहुत पहले से हो रहा है। अंजीर साल भर नहीं उगता है इसलिए इसके सूखे रूप का ही ज़्यादातर इस्तेमाल होता है, जो हमेशा बाजार में उपलब्ध होता है। अंजीर किसी भी व्यंजन में इस्तेमाल करने पर एक अलग ही स्वाद ला देता है। क्या आपको पता है कि अंजीर के कितने स्वास्थ्यवर्द्धक गुण हैं-
• हजम शक्ति को बढ़ाता है
अंजीर में फाइबर उच्च मात्रा में होता है, जैसे- अंजीर में तीन टुकड़ों में 5 ग्राम फाइबर होता है, जो रोज के 20त्न ज़रूरत को पूरा करने में समर्थ होता है। इसके नियमित सेवन से कब्ज़ की बीमारी और पेट संबंधी समस्या से राहत मिलती है।
• वज़न घटाने में सहायता करता है
अंजीर में फाइबर उच्च मात्रा में होने के साथ-साथ कैलोरी कम होता है। अंजीर के एक टुकड़े में 47 कैलोरी होता है और फैट 0.2 ग्राम होता है। इसलिए वज़न घटाने वालों के लिए यह एक आदर्श स्नैक्स बन सकता है।
• उच्च रक्तचाप से बचाता है
अगर आप आहार में नमक ज़्यादा लेते हैं तो वह शरीर में सोडियम के स्तर को बढ़ाने में सहायता करता है। इससे शरीर में सोडियम-पोटाशियम के स्तर का संतुलन बिगड़ जाता है जिसके कारण उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। अंजीर इस संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है क्योंकि एक सूखे अंजीर में 129 मिलीग्राम पोटाशियम और 2 मिलीग्राम सोडियम होता है।
• एन्टीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होता है
सूखे अंजीर में एन्टीऑक्सिडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं। विनसन जे.ए. और उनके सहयोगियों के एक अध्ययन के अनुसार प्राकृतिक अंजीर में सूखे अंजीर के तुलना में कम एन्टीऑक्सिडेंट्स के गुण होते हैं। इसमें दूसरे एन्टीऑक्सडेंट प्रदान करने वाले खाद्द पदार्थों की तुलना में ज़्यादा एन्टीऑक्सिडेंट होता है।
• दिल को स्वस्थ रखता है
इसमें उच्च मात्रा में एन्टीऑक्सडेंट गुण होने के कारण यह शरीर से फ्री-रैडिकल्स को दूर करने में मदद करता है जिससे रक्त कोशिाकाएं स्वस्थ रह पाती है और दिल की बीमारी का खतरा कुछ हद तक कम हो जाता है।
• कैंसर से रक्षा करता है
एन्टीऑक्सिडेंट गुण से भरपूर अंजीर फ्री-रैडिकल्स के क्षति से डी.एन.ए. की रक्षा करता है जिससे कैंसर होने की संभावना कुछ हद तक कम हो जाती है। पढ़े-� ऑस्टियोपोरोसिस की दवा गर्भाशय कैंसर के खतरे को करता है कम
• हड्डियों को शक्ति प्रदान करता है
एक सूखे अंजीर में 3त्न कैल्सियम होता है जो शरीर के लिए कैल्सियम के ज़रूरत को पूरा करने में सहायता करता है। दूसरे कैल्सियम युक्त खाद्द पदार्थों के साथ यह मिलकर हड्डियों को शक्ति प्रदान करता है।
• प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य को उन्नत करता है
प्राचीन काल से सेक्स के लिए उत्तेजना प्रदान करने के लिए अंजीर का सेवन किया जाता रहा है। अंजीर फर्टिलटी में सहायता करता है। क्योंकि इसमें जो जिन्क, मैंगनीज, और मैग्नेशियम होता है वह प्रजनन स्वास्थ्य को उन्नत करने में बहुत सहायता करता है।

नारियल के औषधीय गुणों पर एक नजऱ

coconut coconut_2

स्वादिष्ट भोजन-मिष्टान्न में सूखे कटे एवं पिसे हुए नारियल के प्रयोग के अतिरिक्त शुध्दता के कारण धार्मिक कार्यों और प्रसाद वितरण में यह शुभ माना जाता है। इस प्रकार नारियल के विभिन्न उपयोगों से प्रमाणित हो जाता है कि नारियल अनेक गुणों का धारक है, जिसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।
कच्चे नारियल के गूदे के प्रयोग से अपच ठीक हो जाती है, जिससे पाचन क्रिया ठीक-ठाक बनी रहती है। पौष्टिक तत्वों एवं औषधीय गुणों का भंडार नारियल तेल, चेहरे के दाग-धब्बे मिटाने में गुणकारी प्रमाणित हो रहा है। नारियल तेल लगाने से शरीर पर होने वाली पित्त ठीक हो जाती है। नारियल तेल में बना भोजन करने से वजन में आश्चर्यजनकरूप से कमी आई है।
नारियल से बनी खाद्य सामग्री स्वादिष्ट एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है। नारियल की चटनी दक्षिण भारतीय भोजन इडली-डोसा को पूर्णता प्रदान करती है। नारियल का पानी पीकर,कच्चा नारियल खाने से कृमि निकल जाते है।
एक नारियल का पानी गर्भावस्था में पीते रहने से सुन्दर सन्तान का जन्म होता है। नारियल मूत्र साफ़ करता है। कामोत्तेजक है। मासिक धर्म खोलता है। यह शरीर को मोटा करता है। मस्तिष्क की दूर्बलता दूर करता है। खांसी और दमा वालों को नारियल नहीं खाना चाहिये। नारियल का पानी पीने से पथरी निकल जाती है।

सेहत के रखवाले हरी दूब और गेंहूं के जवारे

हरी दूब सेहत के रखवाले हरी दूब और गेहूं के जवारे गेहूं के जवारों के रस को अमृत रस कहा जाता है, इसका उपयोग विकसित देशों में क्यों बढ़ता जा रहा है, पढ़ें ….. दूब घास प्रकृति में एक ऐसी वनस्पति है जो संसार के किसी भी कोने में, किसी भी जलवायु में उपलब्ध है। यूं तो इस घास को सदा से ही पूजनीय माना जाता रहा है अधिक गौर करने वाली बात यह है कि इसका उपयोग मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। इसमें कुछ ऐसे मुख्य पोषक तत्व हैं जो प्रकृति ने कूट-कूट कर भर दिये हैं। इसमें मौजूद सभी पोषक तत्वों का पता वैज्ञानिक नहीं लगा पाए हैं, फिर भी कुछ तत्व जिनके बारे में पता है, इस प्रकार हैं: बीटा केरोटीन, फोलिक एसिड, क्लोरोफिल, लौह तत्व, कैल्शियम, मैग्नीशियम, एंटी आॅक्सीडेंट, विटामिन बी काॅम्पलेक्स, विटामिन के आदि। बीटा कैरोटीन: शरीर में बीटा कैरोटीन विटामिन ‘ए’ में परिवर्तित हो जाता है। सभी जानते हैं कि विटामिन ‘ए’ हमारी त्वचा एवं आंखों की रोशनी के लिए कितना महत्वपूर्ण है। फोलिक एसिड: फोलिक एसिड हमारे शरीर में लाल रक्त कणों को परिपक्व करने के लिए एवं रक्त में होमोसिस्टीन नामक रसायन की मात्रा कम करने के लिए जरूरी है। होमोसिस्टीन की रक्त में मात्रा ज्यादा होने से न केवल रक्तचाप बढ़ जाता है अपितु हृदय रोग की भी संभावना बढ़ जाती है। क्लोरोफिल: यह मानव रक्त से बहुत मिलता-जुलता है। इसमें और मानव रक्त में केवल एक फर्क होता है, वह है क्लोरोफिल के केंद्र में मैग्नीशियम कण होता है तो हीम रिंग में लौह कण। शरीर को क्लोरोफिल को रक्त में बदलने के लिए केवल एक रासायनिक क्रिया करनी पड़ती है, मैग्नीशियम कण को निकालकर उसकी जगह लौह कण को डालना होता है और निकाले हुए मैग्नीशियम को शरीर की हड्डियों की मजबूती तथा रक्तचाप(ब्लडप्रेशर) को नियमित (सामान्य) करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। क्लोरोफिल केवल रक्त ही नहीं बनाता अपितु यह एक अति प्रभावी ऐन्टीबायोटिक के रूप में भी कार्य करता है। इससे शरीर कीटाणुओं के संक्रमण से बचा रहता है। गेहूं के जवारों में मौजूद केल्शियम शरीर की हड्डियों एवं दांतों की मजबूती एवं स्वास्थ्य हेतु सामान्य रासायनिक क्रिया के लिए अति लाभप्रद है। इनमें मौजूद मेग्नीशियम रक्तचाप को सामान्य करने के लिए अति आवश्यक है। फ्री रेडिकल: ये अत्यंत क्रियाशील इलेक्ट्राॅन होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में रासायनिक क्रियाओं के उपरांत उत्पन्न होते हैं। चूंकि ये इलेक्ट्राॅन असंतृप्त होते हैं, अपने को संतृप्त करने के लिए ये कोशिकाभित्ति से इलेक्ट्राॅन लेकर संतृप्त हो जाते हैं, परंतु कोशिकाभित्ति में असंतृप्त इलेक्ट्राॅन छोड़ जाते हैं। यही असंतृप्त इलेक्ट्राॅन फिर इलेक्ट्राॅन लेकर संतृप्त हो जाते हैं और इस प्रकार से बार बार नये असंतृप्त इलेक्ट्राॅन/फ्री रेडिकल उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते रहते हैं। अगर इन फ्री रेडिकलों को संतृप्त करने के लिए समुि चत मात्रा म ंे एन्टी आॅक्सीडटंे नहीं मिलते तो कोशिकाभित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है। यही क्रिया बार-बार होते रहने से कोशिका समूह क्षतिग्रस्त हो जाता है और मनुष्य एक या अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। यही एक महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है आजकल की लाइफस्टाइल बीमारियों मधुमेह, हृदय रोग, रक्तचाप, गठिया, गुर्दे और आंखों के काले या सफेद मोतिया रोग इत्यादि का। गेहूं के जवारे इन्हीं फ्री रेडिकलों को नष्ट करने में शरीर की हर संभव सहायता करते हैं। आज अगर प्रकृति में सभी शाकाहारी जानवरों के आहार पर गौर करें तो पाएंगे कि दूब घास उन्हें आहार से होने वाले सभी रोगों से मुक्त रखती है। कुत्ता एक मांसाहारी जानवर होते हुए भी जब बीमार होता है तो प्रकृतिवश भोजन छोड़कर केवल दूब घास खाकर कुछ दिनों में अपने आप को ठीक कर लेता है। मनुष्य साठ की आयु पर पहुंचते ही काम से रिटायर कर दिया जाता है। इसका कारण उसकी बुद्धि तथा याददाश्त कम होना माना जाता है परंतु हथिनी जिसकी आयु मनुष्य के ही बराबर आंकी गयी है, उसकी न तो याददाश्त कम होती है, न ही उसे सफेद या काला मोतिया होता है और न ही उसे 3900-6000 किलोग्राम भार के बावजूद आथ्र्राइटिस (गठिया) रोग होता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस: अल्सरेटिव कोलाइटिस ;न्सबमतंजपअम ब्वसपजपेद्ध के रोगी द्वारा जवारों का नियमित प्रयोग करने से दवाओं की मात्रा कम करने के साथ-साथ रोग के लक्षणों में भी कमी आई। यह बात जानने योग्य है कि इन रोगियों में इस बीमारी से आंत के कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जवारों से उसका खतरा भी कम हो जाता है। सभी कैंसर रोगों में इन जवारों का उपयोग बहुत लाभकारी है। जवारे तैयार करने की विधि: लगभग 100 ग्राम अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं को साफ पानी से धोकर, फिर भिगोकर 8 से 10 घंटे रख दें। तत्पश्चात इन्हें 1 फुट ग् 1 फुट की क्यारियों या गमलों में बो दें। यह काम रोजाना सात दिनों तक करें। सातवें दिन पहले गमले/क्यारी मे ं गेह ंू या जौ के जवारे करीब 8-9 इंच तक लंबे हो जाएंगे। अब उन्हें मिट्टी से ऊपर-ऊपर काट लें, मिक्सी में डालकर साथ में कोई फल जैसे केला, अनानास या टमाटर डालकर मिक्सी को चला लंे। फिर इस हरे रस को चाय की छन्नी से छान कर कांच के गिलास में डालकर आधे घंटे के अंदर सेवन करें। आधे घंटे के पश्चात जवारों के रस से मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी आ सकती है। जवारों को काटने के बाद जड़ांे को मिट्टी से उखाड़ कर फेंक दें और नई मिट्टी डालकर नये गेहूं बो दें। काटने के बाद जो जवारे दोबारा उग आते हैं उनसे शरीर को कोई लाभ नहीं मिलता है। मसूड़ों की सूजन हो एवं खून आता हो तो जवारों को चबा चबा कर खाने से यह रोग केवल एक महीने में ही काफूर हो जाता है। लू लगने पर: लू लगने पर भी जवारों के रस का सेवन बहुत लाभ पहुचाता है। किसे गेहूं के जवारे न दें: बच्चों को एवं उन लोगों को जिन्हें दस्त हो रहे हों, मितली हो रही हो और आमाशय में तेजाब बनता हो। जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी हो, वे जौ के जवारे इस्तेमाल कर सकते हैं। गेहूं के जवारों, दूब घास आदि के नियमित प्रयोग से अन्य फायदे शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है। हिमोग्लोबिन द्वारा आॅक्सीजन ले जाए जाने की मात्रा बढ़ जाती है। जिन लोगों का रात की पार्टी में शराब या नशे के पदार्थों के सेवन से सुबह सिर भारी रहता है, उनको भला चंगा करने के लिए 1 कप जवारों का सेवन कुछ घंटे में जादू का सा असर करता है। कब्ज को दूर करते हैं और कब्ज के कारण होने वाले रोगों जैसे बवासीर, एनल फिशर एवं हर्नियां से बचाते हैं। बढ़े हुए रक्तचाप को कम करते हैं। कैंसर के रोगी का कैंसर प्रसार कम करने में सहायता मिलती है। साथ ही कैंसर उपचार हेतु दवाओं के दुष्प्रभाव भी बहुत हद तक कम होते हंै। ऐनीमिया (अल्परक्तता) के रोगी का हिमोग्लोबिन बढ़ जाता है। थेलेसिमिया नामक बीमारी में बिना खून की बोतल चढ़ाए, हिमोग्लोबीन बढ़ जाता है। भूरे/सफेद हो गए बाल पुनः काले होने लगते हैं। गठिया (ओस्टियोआथ्र्राइटिस) के रोगी बढ़ते ही जा रहे हैं। वे इन घास/जवारों से अप्रत्याशित लाभ पाते हैं। अगर इसके सेवन के साथ-साथ वे संतुलित, जीवित आहार करें, फास्ट फूड से बचें तथा नियमित योगाभ्यास करें तो बहुत लाभ होगा। लेखक के कुछ अनुभव बेहोश व्यक्ति का होश में आना: यह व्यक्ति उच्च रक्तचाप के कारण दिमाग की रक्त धमनी से रक्त निकलने से बेहोश हो गया था। पूरा बेहोश होने के कारण उसके पोषण हेतु राईल्स नली डालकर घर भेज दिया गया था। उसे दो सप्ताह तक पानी और दूब घास के सेवन से होश आ गया और उसके बाद जीवित शाकाहारी आहार से अब पूर्णतः ठीक है। मधुमेह: रोगी को 1989 से मधुमेह है। अब उन्हें पिछले 4-5 वर्ष से घुटनों में दर्द भी रहना शुरु हो गया था। कारण बताया गया कि ओस्टियोआथ्र्राइटिस हो गया है। रोजमर्रा के घर के कार्य करने में भी परेशानी महसूस होती थी। मेरे कहने पर उन्होंने गेहूं के जवारों को उगाया और जब ये जवारे 8-9 इंच लंबे हो गये तब उन्हें काट कर पीना शुरु किया। साथ में उन्हें पैरों की उंगलियां में सुन्नपन और पिंडलियों में दर्द रहने लगा था। उन्होंने न्यूरोबियोन के 10 इन्जेक्शन लगवाए पर कोई आराम नहीं हुआ। तब उन्होंने गेहूं के जवारे 20 दिन लिये। फिर अगले महीने 20 दिन इन जवारों का रस लिया। बाद में घर में व्यस्तता के कारण जवारों का रस पीना छोड़ दिया। उन्होंने इन्हीं दिनांे अलसी के कच्चे बीज भी 15-20 ग्राम रोज खाने शुरु कर दिये। अब मधुमेह काबू में रहता है, घुटने के दर्द में बहुत आराम हुआ और जो उंगलियां सुन्न पड़ गई थी उनमें, साथ ही पिंडलियों के दर्द में भी बहुत आराम आ गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उन्हें जो एक प्रकार का अवसाद रहने लगा था, लगभग खत्म हो गया है। मोटापा: आज से करीब 7 महीने पहले जब एक सज्जन मेरे पास आए तो उनका वजन 114 किग्रा. था। उन्होंने मेरे कहने पर पका हुआ भोजन बंद कर अंकुरित अनाज, दाल, फल, सलाद एवं दूब घास खाना शुरु कर दिया। शुरु के पहले माह ये सब भोजन खाने में बहुत कष्ट होता था, अपने आपको बहुत काबू में रखना पड़ता था, परंतु जैसे ही पहला महीना गुज़रा उनका वजन 4 कि.ग्रा. कम हो गया। अब उन्हें कच्चे, अपक्व भोजन एवं दूब घास के सेवन में बहुत आनंद आने लगा। दूसरे माह में करीब 7 कि.ग्रावजन कम हो गया। शरीर में इतनी ताकत बढ़ गयी कि जहां 50 कदम चलने से ही सांस फूलने लगता था, रक्तचाप बढ़ा रहता था, अब दोनों में आराम आ गया। अब भी प्रति माह 2 कि. ग्रा. वजन नियमित रूप से कम होता जा रहा है। उनके पूरे परिवार ने अंकुरित कच्चे अनाज एवं फल, सलाद आदि को नियमित भोजन बना लिया है। वेरिकोज़ वेन्ज से उत्पन्न घाव: एक रोगी को रक्त धमनियों के रोग वेरिकोज़ वेन्ज के कारण न भरने वाला घाव बन गया था। तीन महीने घास के रस को पीने तथा जवारे के रस की पट्टी से हमेशा के लिए ठीक हो गया। एक सज्जन को कोई 10-12 वर्ष से सोरियासिस ;च्ेवतपंेपेद्ध नामक चर्म रोग था। उन्होंने मेरे आग्रह पर गेहूं के जवारे खाना तथा जवारों का लेप शुरु कर दिया। पहले महीने में त्वचा के चकत्तांे से खून आना तथा खुजली बंद हो गई। दूसरे माह में ये सभी सूखने शुरु हो गये, साथ ही चकत्तों की परिधि की त्वचा मुलायम होनी शुरु हो गई। इन्होंने प्रेडनीसोलोन नामक दवा खानी बंद कर दी। 4 महीनों में इनकी त्वचा सामान्य हो गयी। चेहरे पर झाइयां हो जाती हों या आंखों के नीचे काले गड्ढे पड़ जाते हों तो इन दोनों ही चर्म रोगों में जवारों का रस पीने के साथ-साथ लेप करने से 3 महीने में अप्रत्याशित लाभ मिलता है। बुखार: एक बच्चा जिसे बार-बार हर महीने बुखार हो जाता था, कई बार एक्सरे कराने एवं रक्त की जांच कराने पर कुछ दोष पता नहीं चलता था। दूब घास के रस को तीन महीने पीने के बाद कभी बुखार नहीं हुआ। जुकाम एवं साइनस: एक रोगी को प्रतिदिन छींक आती रहती थी, जुकाम रहता था तथा साइनस का शिकार हो गया था। जवारों के 6 माह तक नियमित सेवन से रोग खत्म हो गया। इन्फेक्शन से गले की आवाज बैठ ;स्ंतलदहपजपेद्ध गई हो तो भी जवारों का रस या दूब के रस के सेवन से पांच दिनों में पूरा आराम मिलता है। माइग्रेन (आधे सिर का दर्द): माइग्रेन ;डपहतंपदमद्ध के कुछ रोगियों को पहले ही दिन में तीन बार जवारों का रस पीने से 50 प्रतिशत तक लाभ हो जाता है। शारीरिक कमजोरी: एक साहब को रक्तचाप बढ़ जाने से रक्तस्राव होकर अधरंग हो गया था। दवाइयां खाने से अधरंग और रक्तचाप पर तो काबू आ गया परंतु उनका वजन काफी कम हो गया और बहुत शारीरिक कमजोरी हो गई। उन्होंने शिमला में किसी सज्जन की सलाह पर गेहूं के जवारे लेने शुरु कर दिए। 3 माह के अंदर पूरा कायाकल्प हो गया। कमजोरी का नामोनिशान नहीं रहा।

गेहूँ में गुन बहुत हैं

क्या आप जानते हैं?
चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है।
विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार गेहूँ के जवारों में अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है।
गेहूँ मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र से आई एक घास है जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है। गेहूँ की रोटी भारत के लगभग हर प्रदेश में किसी न किसी रूप में खाई जाती है। विशेषरूप से उत्तरी भारत में दिन का प्रारंभ अनेक घरों में गेहूँ से निर्मित ब्रेड या पराठों के साथ ही होता है। इसके अतिरिक्त इससे अनेक प्रकार के मिष्ठान्न तथा स्वास्थ्यप्रद भोजन भी बनाए जाते है इस कारण गेहूँ को “अनाजों का राजा” माना जाता है।
विश्व में कुल कृषि भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है यद्यपि एशिया में मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है, तो भी गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। यह विश्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। प्रति वर्ष इसका उत्पादन ६२.२२ करोड़ टन से भी अधिक होता है। चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन ११-१२ प्रतिशत प्रोटीन होता हैं। गेहूँ मुख्यत: विश्व के दो मौसमों, यानी शीत एवं वसंत ऋतुओं में उगाया जाता है। शीतकालीन गेहूँ ठंडे देशों, जैसे यूरोप, सं॰ रा॰ अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस राज्य संघ आदि में उगाया जाता है जबकि वसंतकालीन गेहूँ एशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाया जाता है। वसंतकालीन गेहूँ १२०-१३० दिनों में परिपक्व हो जाता है जबकि शीतकालीन गेहूँ पकने के लिए २४०-३०० दिन लेता है। इस कारण शीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक हाती है।
भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन विशेषतः पंजाब, गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है। वर्षा ऋतु में खरीफ की फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में बोया जाता है। अच्छी सिचाई वाले रबी की फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली, पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि खरीफ की बिना सिचाई वाली वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है। सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है।
गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है। उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ (बालियाँ) लगती है, जिसमे गेहूँ के दाने होते है। गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है।
गेहूँ की अनेक किस्में होती है जिनमें कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है। रंगभेद की दृष्टि से गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है। इसके अतिरिक्त बाजिया, पूसा, बंसी, पूनमिया, टुकड़ी, दाऊदखानी, जुनागढ़ी, शरबती, सोनारा,कल्याण, सोना, सोनालिका, १४७, लोकमान्य, चंदौसी आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है। इन सभी में गुजरात में भाल-प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर- मालवा के गेहूँ प्रशंसनीय है।
गेहूँ के आटे से रोटी, सेव, पाव रोटी, ब्रेड,पूड़ी, केक, बिस्कुट, बाटी, बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है। इसके अतिरिक्त गेहू के आटे से हलुआ, लपसी, मालपुआ, घेवर, खाजे, जलेबी आदि मिठाइयाँ भी बनती है। गेहूँ के पकवानों में घी, शक्कर, गुड़ या शर्करा डाली जाती है। गेहूँ को ५-६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पौष्टिक हलुआ बनाया जाता है, गेहूँ का दालिया भी पौष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है, गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है। गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है, और उसकी रोटी चपाती, बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है। घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती। सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है। गेहूँ से आटा, मैदा, रवा और थूली तैयार की जाती है। गेहूँ में मधुर, शीतल, वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ, कफकारक, वीर्यवर्धक, बलदायक, स्निग्ध, जीवनीय, पौष्टिक, रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है। घाव के लिए हितकारी होने के कारण आटे की पुलटिस के रूप में गेहूँ का प्रयोग होता है।
गेहूँ के जवारे या गेहूँ की भुजरियाँ
गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है। यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है। अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें केवल गेहूँ के रस में ही मिल जाता है। गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है जिनके सेवन से कब्ज व्याधि और गैसीय विकार दूर होते हैं, रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े, फुंसी, चर्मरोग आदि भी दूर हो जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बाँधने से शीघ्र लाभ होता है। श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दमे जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है। गेहूँ के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है। इसके अतिरिक्त दाँत व हड्डियों की मजबूती के लिये, नेत्र विकार दूर करने और नेत्र ज्योति बढाने के लिये, रक्तचाप व ह्रदय रोग से दूर रहने के लिये, पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकालने के लिये तथा मासिक धर्म की अनियमितताए दूर करने के लिये भी जवारे का रस के प्रयोग की बात कही जाती है।
जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें, इसे फ्रिज में रखकर कभी भी प्रयोग न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है। जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें। सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है। रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके। जब तक गेहूँ के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें, ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे।
गेहूँ के पौधे का सीधे सेवन भी किया जाता है। गेहूँ के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े, साथ ही वह स्थान हवादार भी हो, यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है। पहले दिन पहले गमले में उत्तम प्रकार के गेहूँ के दाने बो दें इसी तरह दूसरे दिन दूसरे गमले में, फिर तीसरे गमले में…आदि। यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे, आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें, मिक्सी में भी रस बना सकते है। उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे। खाली गमले में पुनः गेहूँ के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है इससे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है लेकिन हर शरीर कि अपनी अलग तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लें।हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूँ के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
गेहूँ के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूँ के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूँ के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है। यहाँ एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूँ के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।
यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूँ के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूँ के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूँ के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती हैैैै, क्योंकि गेहूँ के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है। इसे प्रातःकाल स्वल्पाहार के रूप में भी ग्रहण कर सकते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि कुछ मांसाहारी प्राणी जैसे कुत्ते व शेर मौसम बदलने पर पाचक अंगों की आंतरिक सफाई करने के लिए घास का सेवन करते हैं और उल्टी व दस्त के माध्यम से शरीर की आंतरिक सफाई प्राकृतिक रूप से कर लेते हैं। आंतों में पड़ा हुआ खाना सड़ता है,इस वजह से टॉक्सीन पैदा होते हैं और ये टॉक्सीन रक्त को दूषित करते हैं और इस वजह से मनुष्य कैंसर का शिकार हो जाता है। इसलिए,गेहूं के जवारों के सेवन से पोषण ही प्राप्त नहीं होता,समस्त पाचन अंगों की प्राकृतिक सफाई भी हो जाती है।

प्रयोग विधि :-
जवारों को उनके आधार से काट लें। काटने के पश्चात अच्छी तरह से धो लें। धोने के पश्चात पुनः कैंची से बारीक-बारीक काट लें। काटने के पश्चात उसे मिक्सर में थोड़ा पानी मिलाकर पीसकर छान लें। अब इसका सेवन कर लें। इसे सुबह-सुबह खाली पेट लें। इसके सेवन के पश्चात १ घंटे तक कोई भी आहार व पेय पदार्थ न लें। प्रारंभ में २५-३० मिली गेहूँ के जवारों का प्रयोग करना चाहिए। बाद में इसकी मात्रा सेवन करने वाले की पाचन क्षमता के अनुसार २००-३०० मिली तक बढ़ाई जा सकती है। जिन्हें पाचन संबंधी तकलीफ है, उन्हें जवारों का रस पीने के स्थान पर उसे चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि उनके पाचन संबंधी रोग ही दूर नहीं होते हैं वरन्* गेहूँ के जवारे आसानी से पच भी जाते हैं। आँतों व आमाशय के अल्सर में पत्तागोभी का रस व गेहूँ के जवारे का रस चमत्कारिक परिणाम देता है
सावधानी : –
गेहूँ के जवारों का रस निकालने के पश्चात अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्व समय बीतने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि गेहूँ के जवारों में पोषक तत्व सुरक्षित रहने का समय मात्र ३ घंटे है। गेहूँ के जवारों को जितना ताजा प्रयोग किया जाता है , उतना ही अधिक उसका स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन प्रारंभ करते समय कुछ लोगों को दस्त, उल्टी, जी घबराना व अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, किंतु उन लक्षणों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है केवल इसकी मात्रा को कम या कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर सकते हैं।


गेंहूँ के जवारे का रस अमृत के समान, प्रक्रति का अनमोल उपहार, आसानी से उपलब्ध होने वाला, शीघ्रता से असर करने वाला, शारीरिक कमजोरी को दूर करने वाला, शक्तिवर्धक. जटिल रोगों के लिए बेशकीमती महा-औषधि, तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता के गुणों से भरपूर है। गेहूँ के जवारे को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है। इसमें क्लोरोफिल का सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं। और क्लोरोफिल के अलावा अन्य सैकड़ो पोषक तत्व् उपस्थित हैं। ज्वारे में विटामिन-डी और बी-12 के ईलावा सभी विटामिन (ई-बी.1, 2, 3, 5, 6, 8 और 17-सी-ई तथा के) प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। उसमें उपस्थित विटामिन-बी-17 (लिट्राइल) को कई आरोग्यशास्त्री कैन्सर को नष्ट करने का एक मात्र उपाय मानते हैं। सभी स्वस्थ मिट्टी में पाये जाने वाले 100 से अधिक खनिजों सहित गेंहूँ के जवारे में केल्शियम, सोडियम, मेग्नीशियम, पोटेशियम, आयोडीन, सेलेनियम, लौह, जिंक और अन्य सभी आठ आवश्यक अमीनो एसिड और प्रोटीन होते हैं। 7 से 10 दिन पुरानी गेंहूँ के जवारे के रस में अन्य साग सब्जियों से अधिक एंजाइम शामिल हैं। गेहूँ के ज्वारे का रस और मानव-रक्त दोनों की रासायनिक संरचना पी.अच्.( pH)7.4 व क्षारीयता लगभग एक जैसी है। इसीलिए गेहूँ के ज्वारे का रस शीघ्रता से पचता है और रक्त में अवशोषित हो जाता है और शीघ्र शरीर के उपयोग में आकर शरीर को स्वस्थ करने लगता है। गेहूँ के जवारे के रस में रक्त और शरीर शोधन करने की अदभुत क्षमता है
गेंहूँ के जवारे के रस के नियमित प्रयोग से अनिद्रा, त्वचा रोग, संधि वात, प्रदर रोग, बालों के रोग, पीलिया, जुकाम, मोटापा, पथरी, बवासीर, अस्थमा, एसिडीटी, कब्ज, खून की कमी (अनीमिया) गठिया एवं कैंसर जटिल जैसे रोगों से बच सकते हैं। गेहूँ के ज्वारे का रस कैंसर की कोशिकाओं को ढूंड-ढूंड कर नष्ट करता है। तथा उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है और बुढ़ापे की कमजोरी को आने से रोकता हैं। तथा शारीरिक सौंदर्य और लम्बे समय तक चेहरे पर तेज भी कायम रखता हैं। गेहूँ के जवारे के रस को ग्रीन ब्लड (हरा खून) भी कहा जाता है। गेहूं घास का रस खून को साफ़ करता है तथा जहरीले घटकों (विषाक्त पदार्थों) जो की खून में जमा है उनको निकाल बहार करता है।
गेहूँ के जवारे के रस से (मौजूद क्लोरोफिल से) एंटीसेप्टिक लाभ के लिए, संक्रमण को बेअसर व काबू में करने के लिए, घावों को ठीक करने के लिए, कटी फटी त्वचा को जल्द ठीक कर के जोड़ने के लिए, पसीने की दुगंध को भगाने के लिए आंतो के घावों को चंगा करने के लिये योनि संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए, टाइफाइड बुखार को कम करने करने के लिए, नाडी तत्र को ठीक करने के लिए, सूर्य विकरनो से होने वाले रोगों के इलाज करने के लिए, कान की सूजन को ठीक करने के लिए, गले में खराश के लिए तथा आंतो को सुचारू और सवस्थ करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। गेहूँ के जवारे के रस में क्लोरोफिल (जीवाणुरोधी) है जो शरीर के अंदर और बाहर औषधीय मरहम के तोर इस्तेमाल किया जाता है। नवरात्रि में नौ दिनों तक अक्सर हर घर में गेंहू के जवारे उगाने का रिवाज था। जब मिटटी के घड़े का पानी पिया जाता था तब इन दिनों घड़े में कुछ गेंहू के साफ़ जवारे डाल दिए जाते थे ताकि गेंहू के जवारो से घड़े का पानी शुद्ध हो कर विषाणु रहित हो जाए।
गेहूँ के ज्वारे के रस के नियमित सेवन से सहनशक्ति बढ़ती है, यौन ऊर्जा, विचारों की स्पष्टता में सुधार आता है। नशे की लत कम कर देता है यह भी त्वचा की बनावट और बड़ी उम्र के सूखेपन में सुधार होता हैं, और क्रोनिक रोग (पुराणी बीमारियाँ) और इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) मजबूत होती है। गेहूँ के ज्वारे चबाने से गले की खारिश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है। रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है। स्त्रियों को ज्वारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गंध और खुजली में भी आराम मिलता है। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता है और त्वचा में चमक आती है। अंकुरित गेंहूँ का तेल मांसपेशियों की समस्या में बहुत उपयोगी है। अंकुरित गेंहूँ का तेल प्रसव के बाद त्वचा पर बने निशानों को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय होता है।
गेंहू के जवारे के रस में भरपूर क्लोरोफिल होता है,क्लोरोफिल शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, जो शरीर को ऑक्सीजन से लबालब भर देता है। जिससे कैंसर कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और ऑक्सीजन और कैंसर कभी एक साथ नहीं रह सकते और ऑक्सीजन की अधिकता से कैंसर की कोशिकाये मरने लगती है। अगर नियमित इस रस का सेवन किया जाए तो कैंसर की गाँठे तक गल जाती है।

गेहूँ के जवारों का उपयोग :—
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से शरीर की सुरक्षा प्रणाली (इम्यून-सिस्टम) मजबूत होता है।
गेहूँ के जवारों का रस, पावडर, अंकुरित गेंहू का तेल व टेबलेट आदि बाजार में भी मिल जाते है।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से जोड़ो, नींद, त्वचा, मासिक धर्म आदि की बीमारी से निजात मिलती है।
गेहूँ के ज्वारे के रस का सेवन करने से रक्त की शुद्धि व रक्त में हिमोग्लोबिन की मात्रा भी संतुलित होती है।
गेहूँ के जवारे चटनी के रूप में, सलाद के रूप में, रस के रूप में, और गेंहू को अंकुरित कर प्रयोग किया जाता है।
विटामिन ई की वजह से अंकुरित गेंहू मांसपेशियों, रक्त प्रवाह, आँखों और साँस के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी, कैंसर, थैलेसिमिया, मधुमेह (शुगर) आदि बीमारियों की रोकथाम होती है।
सोराइसिस के लिए अंकुरित गेंहूँ का तेल व अरंडी का एक-एक चम्मच तेल लें कर इसमें 50 मि.ली. सूरजमुखी का तेल मिलाकर त्वचा पर मले।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से कब्ज, अल्सर, कोलाईटीस (आंव), बवासीर, अम्लपित्त आदि पेट सम्बन्धी सभी बीमारीयों के उपचार में मदद मिलती है।
गेहूँ के ज्वारे के रस का सेवन शरीर में रक्त और पोषक तत्वों की कमियों (अनीमिया) को अति शीघ्रता से पूरा करता है, तथा शरीर के वजन को संतुलित करता है।
रोगी को रोज सुबह-शाम गेंहू के जवारे का ताजा रस पिलाने पर आप देखेंगे कि गंभीर रोग भी दस बीस दिन के बाद ठीक होने लगेगे और दो-तीन महीने में मर्त समान प्राणी भी एकदम रोग मुक्त और स्वस्थ हो जाता है।

गेहूँ के जवारे का रस और क्लोरोफिल :—
क्लोरोफिल में शरीर के प्रतिकूल बैक्टीरिया को रोकने की क्षमता होती हैं।
यह लीवर की शुद्धि करता है और शरीर में जले की जलन को कम करता हैं।
यह उच्च रक्तचापज को कम करता है और कोशिकाओं का विस्तार करता है।
यह कीटाणुरोधी हैं, कीटाणुओं को नष्ट करता है और उनके विकास को रोकता है।
गेहूँ के ज्वारे का क्लोरोफिल श्रेष्ट है, क्लोरोफिल से हमें मेग्नीशियम प्राप्त होता है।
गेहूँ के ज्वारे का रस नियमित पीने से एग्जीमा और सोरायसिस भी ठीक हो जाते हैं।
गेहूँ के जवारे का रस तुरंत पच जाता है और शरीर की बहुत कम ऊर्जा का क्षय होता है।
23 किलो चुनिन्दा साग-सब्जियों से प्राप्त पोषण केवल एक किलो ज्वारे से प्राप्त प्राप्त हो जाता है।
गेहूँ के ज्वारे में भरपूर ऑक्सीजन होती है। मस्तिष्क और संपूर्ण शरीर को ऊर्जावान और स्वस्थ रखता है।
कान में कोई भी रोग होने पर गेंहू के जवारे का रस पीने और थोड़ी सी बूंदे कान में डालने से आराम आता है।
घास का रस, जो अनिश्चित काल से शाकाहारी पशुओं को जीवित रखने के लिए पूरक आहार माना जाता है।
गेहूँ के जवारे के रस के नियमित प्रयोग से लोगों को 30 साल पुरानी बीमारियों से भी निज़ात मिल जाती है।
अगर बांझ स्त्रियों को जवारे का रस हर रोज पिलाया जाए तो कुछ ही समय में उनका बांझपन दूर हो जाता है।
गेहूँ के जवारे सभी घासों में श्रेष्ठ है। गेहूँ के ज्वारे के रस से मनुष्य को हर तरह का जरुरी पोषण मिल जाता है।
गेहूँ के ज्वारे के ताजा रस का नियमित सेवन से एग्जीमा और सोरायसिस जसे जटिल रोग भी ठीक हो जाते हैं।
गेहूँ के जवारे से प्राप्त क्लोरोफिल जो कि टिसूज (ऊतकों) में मिलकर उन्हें परिष्कृत और उन्हें खत्म करता है।
अगर बच्चे को भी रोजाना लगभग 5 बूंदे इस रस की सेवन कराई जाए तो बच्चा सुन्दर और स्वस्थ बन जाता है।
गेहूँ के जवारे के रस में कच्चा क्लोरोफिल उपलब्ध होता है इसे बिना किसी भी हानी या खतरे के पिया जा सकता है
ज्वारे के रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों के सफाई और मरमत होती है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
लम्बे समय तक गेंहूँ के जवारे का सेवन किया जाये तो कील- मुहाँसों तथा दाग, धब्बे और झाइयां स्वयं साफ हो जाते हैं।
घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को निकल बहार करता है।
गर्भ वती नारी को रोजाना गेंहू के जवारे का रस पिलाने से उसका बच्चा बहुत ही सुन्दर, स्वस्थ और बुद्धिमान पैदा होता है।
गेहूँ के ज्वारे का रस एक सम्पूर्ण आहार है। केवल गेहूँ के ज्वारे का रस पीकर ही मनुष्य का पूरा जीवन स्वस्थ बीत सकता है।
अल्सर, वेरिकॉज-वेइन्स, वेरिकॉज-अल्सर और आतों की सूजन इत्यादि रोगों में गेंहू के ज्वारे के रस का उपयोग किया जाता है।
यह आर्थ्राइटिस (जोड़ो के दर्द) को ठीक करता है, पेट और आंतो की शुधि करता है और आंतों के लाभप्रद कीटाणुओं को भी पोषण देता हैं।
यह ताजा रस शरीर से हानिकारक पदार्थों (टॉक्सिन्स) को, भारी धातुओं और शरीर में जमा दवाओं के अवशेष को निकाल बहार करता है।
यह ताजा रस कब्ज ठीक करता है, पाचन शक्ति को बढ़ाता है। ज्वारे के रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों का शोधन होता है।
यह उच्च रक्तचाप कम करता है यह मोटापा कम करता है यह भूख को नियमित करता है, शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है।
यह ताजा रस समस्त रक्त संबन्धी रोगों के लिए रामबाण औषधि है। थोड़ी देर गेहूँ के ज्वारे को दांतों से चबाने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
गेंहू के जवारे के ताजा रस से प्राप्त क्लोरोफिल रक्त बनाता है रोग पैदा करने वाले जीवाणु को नष्ट करता है और उनके विकास को रोकता है।
ज्वारे का ताजा रस पीने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते और शरीर को स्वस्थ, ऊर्जावान, सहनशील, शांत और प्रसन्न चित् बनाता है।
गेंहू के जवारे का रस का हर दिन सेवन करने से त्वचा स्वस्थ और चमकदार रहती है बालों का गिरना रुकता है और नाखूनों के लिए भी अच्छा होता है।
यह मोटापा कम करता है क्यों कि यह भूख कम करता है, बुनियादी रसायनिक प्रतिक्रियाओं (मेटाबोलिस्म) दर और शरीर में रक्त के संचार को बढ़ाता है।
यह ताजा रस दांतों को सड़न से बचाते है, दांत का दर्द ठीक करता है। और शरीर को दुर्गंध रहित रखता है। इसके गरारे करने से गले की खारिश ठीक हो जाती है।
क्लोरोफिल कई पौधों में पाया व निकला जाता है, लेकिन गेहूँ के जवारे का रस इन सब में श्रेष्ट है क्योंकि इसमें मनुष्य के लिए आवश्यक 92 % खनिज तत्व पाए जाते है।
ज्वारे के रस का उपयोग गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभ देता हैं। पायोरिया, चर्मरोग, मस्तिष्क का रक्तस्राव क्षय, हृदय-विकार, रक्त नाड़ी तंत्र के परवाह को नियंत्रित करता है।
गेंहू के जवारे के रस का नियमित सेवन से गैस का रोग, एसिडिटी, डायबिटीज, पेट के कीड़े, चमड़ी के रोग, पथरी, मासिक धर्म समय से ना आना, दिल के रोग, कैंसर आदि में लाभ होता है।
गेहूँ के जवारे के रस में मौजूद क्लोरोफिल में उच्च मैग्नीशियम एंजाइम होते है जो कि सेक्स हार्मोन को पुन: सक्रीय करता है जिससे स्त्री-पुरुष और पशुओं की प्रजनन शक्ति पुन: जाग्रत होती है।
मैग्नेशियम की कमी से महिलाओं में पाँवों की मांसपेशियाँ कमजोर होना, पाँवों में बिवाइयां फटना, एकाग्रता में कमी, चिडचिडापन और मासिक-धर्म सम्बन्धी कई परेशानियाँ शुरू हो जाती है।
गेहूँ के जवारे के रस में मौजूद क्लोरोफिल में लाल रक्त कोशिकाओं को पुन: निर्माण करने की क्षमता होती हैं। 4-5 दिन के सेवन करने से शरीर में आई कमी लाल रक्त कोशिकाओं की पूर्ति हो जाती है।
गेहूँ के जवारे के रस में प्रचुर मात्रा में श्रेष्ट क्लोरोफिल उपलब्ध होता है। क्योंकि क्लोरोफिल के अलावा इनमें 100 से अधिक अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। गेहूँ के जवारे के रस से किसी भी अन्य तत्व की तुलना में अधिक सूर्य प्रकाश ऊर्जा और भरपूर ऑक्सीजन भी मिलती हैं।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से नशे की लत घटने लगती है, प्रजनन क्षमता बेहतर बनती है, जहरीले या शरीर के लिए नुकशान दायक बैक्टीरिया के विकास को रोकती है। यह दिल, दिमाग, मांसपेशियों, धमनियों, जोड़ों, हड्डियों, त्वचा, बाल, हार्मोनस, दृष्टि, पाचन शक्ति, गुर्दे, जिगर आदि शरीर की सभी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी सुद्र्ड बनाती है।

मेग्नीशियम से लाभ जो हमें गेंहू के जवारे से मिलता है:—
हमारे शरीर की हर एक कौशिका में सूक्ष्म मात्रा में लगभग 50 ग्राम मेग्नीशियम होता है।
क्लोरोफिल कई रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं को नष्ट करता है और उनके प्रसार को रोकता है।
मेग्नीशियम जो की हमारी हड्डियों के निर्माण तथा नाड़ियों और मांसपेशियों को तनाव रहित रखता है।
शरीर में लगभग तीन सौ ऍन्जाइम्स होते है जिनकी सक्रियता के लिए मैग्नेशियम अत्यंत आवश्यक है।
कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है।जिसे यह दुरुस्त करता है
क्लोरोफिल लीवर को शुद्ध और मजबूत करता है। यह रक्त बनाता है, आंतों के लाभप्रद जीवाणुयों को पोषण भी देता हैं।
यह शरीर में जलन को कम करता हैं गठिया, पेट सम्बन्धी शोथ, आंत्र शोथ, गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभदायक हैं।
घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक है। यह फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को विसर्जन करता है।
मैग्नेशियम शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, नाडी तंत्र और मांसपेशियों की कार्यशीलता के लिये जरुरी है।
मैग्नेशियम रक्तचाप तथा मधुमेह को नियमित करता है। अधिक शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम की आवश्यकता है।

नोट:-
शुरू में रस पीने से परेशानी हो तो कम मात्रा से धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें।
ज्वारे का ताजा रस सामान्यतः 60-120 एमएल प्रति दिन खाली पेट सेवन करना चाहिये।
यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो 30-60 एमएल रस दिन मे तीन चार बार तक ले सकते हैं।
रस निकालकर तुरंत उपयोग करें। तीन घण्टे में जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त होने लगते हैं।
रस में अदरक अथवा खाने वाला पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
इसे गिलोय, लोकी, नीम के पत्तो व तुलसी के पत्तों के रस के साथ भी मिल कर लिया जा सकता है।
रस लेने के पूर्व व बाद में एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें। आधे घंटे में यह रक्त में घुल मिल जाता है।
रस को धीरे-धीरे घूंट घूंट करके पीना चाहिए और सादा भोजन ही लेना चाहिए तथा तली हुई वस्तुएं न खाए।
कुछ लोगों को शुरु-2 में उल्टी-दस्त हो सकते है तथा सर्दी महसूस हो सकती है। यह सब रोगी होने के लक्षण है।
खटाई ज्वारे के रस में मौजूद एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है। इसमें नमक, चीनी आदि भी नहीं मिलाना चाहिये।
इसे खट्टे रसों (नीबू, संतरा, मौसमी) आदि खट्टे रसो को छोड़कर अन्य फलों और सब्जियों के रस के साथ मिला कर भी ले सकते है।

प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है। गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन्? अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूंके जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।
गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।
यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है। यदि किसी असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है

गुणों से भरा गेहूँ के जवारे का पाउडर

गेहूं के जवारे को जिसे हम आपतौर पर वीट ग्रास भी बोलते हैं, बहुत स्वास्थ्यवर्धक व चिकित्सकीय गुणों वाले होते हैं। प्राचीन काल से ही हिन्दुस्तान के चिकित्सक गेहूँ के ज्वारों को विभिन्न रोगों जैसे अस्थि-संध शोथ, कैंसर, त्वचा रोग, मोटापा, डायबिटीज आदि के उपचार में प्रयोग कर रहे हैं। जब गेहूं के बीज को अच्छी उपजाऊ जमीन में बोया जाता है तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती है। जब यह अंकुरण पांच-छह पत्तों का हो जाता है तो अंकुरित बीज का यह भाग गेहूं का ज्वारा कहलाता है। इसके अंदर 19 अमीनो एसिड और 92 खनिज हैं, जो शरीर को अपने उच्चतम स्तर पर कार्य करने की ताकत प्रदान करने में सक्षम हैं। गेहूं की घास का पाउडर इसके निर्जलित रस को निकालने से प्राप्त एक आहार अनुपूरक है। वीट ग्रास पाउडर उस घास से तैयार होता है, जिसे निर्जलित होने से पहले तीन या चार महीने के लिए मैदान पर स्वाभाविक रूप से बड़ा किया गया हो। इस पाउडर के विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के पीछे मुख्य कारण इस निर्जलित उत्पाद में संरक्षित कई पोषक तत्वों के अलावा इसमें केंद्रित क्लोरोफिल उत्पाद है। सबसे अच्छी बात यह है कि गेहूं के विपरीत, यह लस मुक्त होता है। गेहूँ के जवारे के पाउडर को पानी में मिलाकर एक पोषक पेय बनाया जा सकता है, या इसे जूस में अथवा अन्य किसी हल्के पेय में भी मिलाया जा सकता है। इसमें पोषक तत्वों, विटामिन एवं खनिजों के साथ-साथ वीट ग्रास पौधे के सभी तत्व मौजूद होते हैं।
1. पाचन में सहायक: व्हीटग्रास पाउडर पाचन क्रिया को बेहद आसान बनाता है। व्हीटग्रास पाउडर में कुछ क्षारीय खनिज होते हैं, जो अल्सर, कब्ज और दस्त से राहत प्रदान करते हैं। मैग्नीशियम का उच्च स्तर भी कब्ज से राहत में मदद करता है।
2. लाल रक्त कोशिकाओं और सफेद कणिकाओं का बनाना: व्हीटग्रास पाउडर में प्रचुर मात्रा में क्लोरोफिल होता है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है। बढ़ा हुआ यह उत्पादन रक्त को अधिक ऑक्सीजन के संचरण को संभव बनाकर शरीर को ऊर्जावान बनाता है।इस प्रकार, यह लाल रक्त कोशिकाओं और सफेद कॉर्पुसल्स के गठन में मदद करता है।
3. वजन घटाने में सहायक: चूंकि व्हीटग्रास पाउडर जूस अथवा तरल में घोला जा सकता है,इसे अन्य सामग्रियों व स्वाद प्रदान करने वाली चीजों के बदले एक स्वास्थ्यकारी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह शरीर को ज्यादा ऊर्जा प्रदान करता है तथा शक्ति में वृद्धि करता है, जो शरीर को लंबे समय तक मेहनत करने लायक बनाता है, और इस तरह तेजी से वजन घटाया जा सकता है। इसके अलावा, यह पाउडर थायरॉयड ग्रंथि की सक्रियता को बढ़ाकर वजन घटाने में भी मदद करता है। यह उपापचय को बढ़ा देता है तथा मोटापा और अपच से बचाता है।
4. पीएच बैलेंस को ठीक करना: एक क्षारीय भोजन के पूरक होने के नाते, व्हीटग्रास पाउडर शरीर के पीएच को संतुलन प्रदान करता है। इस प्रकार, यह रक्त में अम्लता के स्तर को कम करने में फायदेमंद होता है तथा इसकी क्षारीयता को वापस लौटाता है।
5. शोधक तथा विषनिवारक गुण: व्हीटग्रास पाउडर में उत्कृष्ट विषनिवारक गुण होते हैं। इसके पोषक तत्वों में खनिज तत्व, एंटीऑक्सिडेंट तथा एंजाइम शामिल हैं, जो ताजा सब्जियों के समान होते हैं। इसमें पाये जाने वाले पोषक तत्व सूजन को कम करते हैं। इस प्रकार,यह कोशिकाओं की शक्ति को बढ़ाता है, रक्तप्रवाह तथा जिगर के विषमुक्त बनाता है, कोलन को साफ करता है तथा कार्सिनोजीन्स से सुरक्षा प्रदान करता है।
6. एनीमिया में उपयोगी: व्हीटग्रास में निहित क्लोरोफिल की आणविक संरचना मानव रक्त में हीमोग्लोबिन के समान होती है। व्हीटग्रास पाउडर में पाये जाने वाले क्लोरोफिल के उच्च स्तर को शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है, खून को मात्रा में वृद्धि होती है व हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो जाता है। इस प्रकार व्हीटग्रास पाउडर एनीमिया के इलाज में मदद करता है। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकालना नितान्त तर्कसंगत है कि व्हीटग्रास एनीमिया को दूर करनें में सहायक सिद्ध होता है।
7. कैंसर में उपयोगी व्हीटग्रास में निहित क्लोरोफिल, विकिरण के हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद करता है। इस प्रकार, व्हीटग्रास पाउडर अक्सर कीमोथेरेपी / रेडियोथेरेपी के दौरान कैंसर के रोगियों को लेने के लिए कहा जाता है।
8. मधुमेह के लिए प्राकृतिक उपचार: व्हीटग्रास पाउडर खास तौर पर मधुमेह रोगियों के लाभदायक होता है, क्योंकि यह कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण में विलम्ब उत्पन्न करके रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने में मदद करता है। इस प्रकार, यह प्राथमिक या काफी उन्नत चरण की मधुमेह को भी नियंत्रित कर सकता है।
9. बवासीर का उपचार: कई लाभकारी पोषक तत्वों के अपने संयोजन के कारण, व्हीटग्रास पाउडर बवासीर के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका श्रेय इसमें मौजूद क्लोरोफिल, फाइबर, विटामिन तथा खनिजों की उपस्थिति को है, जो बवासीर के इलाज में बहुत कारगर साबित होते हैं। इस प्रयोजन के लिए,लगातार 3 महीने तक दिन में दो बार व्हीटग्रास पाउडर लेना चाहिए।
10.सड़न का उपचार: व्हीटग्रास पाउडर दंत क्षय और अन्य दंत समस्याओं के इलाज के लिए एक बहुत बड़ा चीज के रूप में है। व्हीटग्रास पाउडर से अपने मसूड़ों की मालिश करके आप उन्हें मसूड़ों की समस्याओं से मुक्त करके, मजबूत तथा दृढ़ बना सकते हैं।
11. दर्द और सूजन से राहत: यह अद्भुत अनुपूरक सामान्य सूजन को कम करता है और खत्म कर देता है। इस प्रकार, यह सामान्य बदन दर्द और अन्य दर्द से राहत प्रदान करने में बहुत फायदेमंद है तथा शरीर को स्वास्थ्य प्रदान कर उसकी कार्यक्षमता को वापस लौटाता है।
12. आँखों के लिए फायदेमंद: व्हीटग्रास अनुपूरक जैसे कि व्हीटग्रास पाउडर की नियमित खुराक आपकी आँखों की रोशनी को बढ़ाता है।
13. वैरिकाज़ नसों की रोकथाम: इस पूरक की नियमित खुराक वैरिकाज़ नसों के विकास की संभावना को कम कर देती है।
14. रक्त साफ करता है: एक विषनाशक एजेंट होने के नाते, व्हीटग्रास पाउडर आपके रक्त की सफाई करता है,और सांस और पसीने की गंदी बदबू को दूर करता है।
15. प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है यह पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन शक्ति को भी बढ़ाने में मदद करता है। जोश में वृद्धि करता है, तथा गर्भधारण में सहायक सिद्ध होता है।
16. त्वचा की सफाई: व्हीटग्रास पाउडर एक बहुत बड़ा त्वचा शोधक है, क्योंकि सतह पर स्थित मृत कोशिकाओं को हटाकर त्वचा को चमक प्रदान करता है। इस प्रकार यह आपके आंतरिक कायाकल्प में मदद करके, आपकी त्वचा को जवानी व लोच प्रदान करता है।
17. मुँहासों का उपचार: व्हीटग्रास पाउडर, अपनी विषरोधीय प्रक्रिया के माध्यम से, मुँहासे को निकलने से रोकता है। तथा स्वस्थ त्वचा को बढ़ावा देता है। व्हीटग्रास पाउडर और दूध से बने पेस्ट लगाने से मुँहासे, झुर्रियां, काले / सफेद सिर के बाल व त्वचा के उपचार में कारगर है।
18. एंटीसेप्टिक गुण: इसके एंटीसेप्टिक गुणों के कारण, व्हीटग्रास पाउडर, घाव, कीड़े के काटने, चकत्ते, कटा हुआ के इलाज के लिए आदर्श है। यह आइवी जहर को साफ करने में मदद करता है।इसके अलावा, यह सूरज से जली त्वचा, फोड़े और एथलीटों के पैरों को भी आराम प्रदान करता है।
19. बुढापा आने से रोके: व्हीटग्रास पाउडर मुक्त कणिंकाओं से होने वाले नुकसान से बचाता है। इसमें प्राकृतिक उम्र बढ़ने से रोकने वाले गुण मौजूद हैं जो कोशिकाओं की कायाकल्प में मदद करते हैं, इस तरह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है। यह सैगिंग त्वचा की समस्या से निपटता है और त्वचा की लोच को बनाये रखता है, इस प्रकार त्वचा की युवा चमक को पुनर्जीवित करता है।
20. रूसी और खोपड़ी की समस्याओं का उपचार: व्हीटग्रास पाउडर से बालों को धोना डैंड्रफ व सूखापन एवं सिर की खुजली को दूर करने का प्रभावी उपाय है। आप व्हीटग्रास पाउडर और सामान्य शैम्पू का मिश्रण तैयार करके खराब बालों को सही करने के लिए इस प्रयोग कर सकते हैं।
21. ग्रे हेयर को कम कर देता है: व्हीटग्रास पाउडर ग्रे बालों को उनके प्राकृतिक रंग को वापस बहाल करने में प्रभावी सिद्ध होता है। बालों का भूरा होना इस पाउडर से बालों को धोकर रोका जा सकता है।

गेंहू के जवारे का रस

गेहूँ का ज्वारा अर्थात गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों की हरी-हरी पत्ती, जिसमे है शुद्ध रक्त बनाने की अद्भुत शक्ति. तभी तो इन ज्वारो के रस को “ग्रीन ब्लड” कहा गया है. इसे ग्रीन ब्लड कहने का एक कारणयह भी है कि रासायनिक संरचना पर ध्यानाकर्षण किया जाए तो गेहूँ के ज्वारे के रस और मानव मानव रुधिर दोनों का ही पी.एच. फैक्टर 7.4 ही है जिसके कारण इसके रस का सेवन करने से इसका रक्त में अभिशोषण शीघ्र हो जाता है, जिससे रक्ताल्पता(एनीमिया) और पीलिया(जांडिस)रोगी के लिए यह ईश्वर प्रदत्त अमृत हो जाता है.

गेहूँ के ज्वारे के रस का नियमित सेवन और नाड़ी शोधन प्रणायाम से मानव शारीर के समस्त नाड़ियों का शोधन होकर मनुष्य समस्त प्रकार के रक्तविकारों से मुक्त हो जाता है. गेहूँ के ज्वारे में पर्याप्त मात्रा में क्लोरोफिल पाया जाता है जो तेजी से रक्त बनता है इसीलिए तो इसे प्राकृतिक परमाणु की संज्ञा भी दी गयी है. गेहूँ के पत्तियों के रस में विटामिन बी.सी. और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

गेहूँ घास के सेवन से कोष्ठबद्धता, एसिडिटी , गठिया, भगंदर, मधुमेह, बवासीर, खासी, दमा, नेत्ररोग,म्यूकस, उच्चरक्तचाप, वायु विकार इत्यादि में भी अप्रत्याशित लाभ होता है. इसके रस के सेवन से अपार शारीरिक शक्ति कि वृद्धि होती है तथा मूत्राशय कि पथरी के लिए तो यह रामबाण है. गेहूँ के ज्वारे से रस निकालते समय यह ध्यान रहे कि पत्तियों में से जड़ वाला सफेद हिस्सा काट कर फेंक दे.

केवल हरे हिस्से का ही रस सेवन कर लेना ही विशेष लाभकारी होता है. रस निकालने के पहले ज्वारे को धो भी लेना चाहिए. यह ध्यान रहे कि जिस ज्वारे से रस निकाला जाय उसकी ऊंचाई अधिकतम पांच से छः इंच ही हो.

आप 15 छोटे -छोटे गमले लेकर प्रतिदिन एक-एक गमलो में भरी गयी मिटटी में ५० ग्राम गेहू क्रमशः चिटक दे, जिस दिन आप १५ गमले में गेहू डालें उस दिन पहले दिन वाला गेहू का ज्वारा रस निकलने लायक हो जायेगा. यह ध्यान रहे की जवारे की जड़ वाला हिस्सा काटकर फेक देंगे पहले दिन वाले गमले से जो गेहू उखाड़ा उसी दिन उसमे दूसरा पुनः गेहू बो देंगे.यह क्रिया हर गमले के साथ होगी ताकि आपको नियमित ज्वारा मिलता रहे.

गेहूं के जवारे में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |

लंबे और गहन अनुसंधान के बाद पाया गया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधों के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |
यहां तक कि इसकी मानवीय कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा प्रभाव देखा गया है |
गेहूं हमारे आहार का मुख्य घटक है | इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है | इस संदर्भ में तमाम महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं. अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. ए. विग्मोर ने गेहूं के पोषक और औषधीय गुणों पर लंबे शोध और गहन अनुसंधान के बाद पाया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधे के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |

एन्टी आक्सी डेंट से भरपूर —
यहां तक कि इसकी मानव कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एन्टीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा असर देखा गया है | यही नहीं, फोड़े-फुंसियों और घावों पर गेहूं के छोटे हरे पौधे की पुल्टिस ‘एंटीसेप्टिक’और ‘एंटीइन्फ्लेमेटरी’ औषधि की तरह काम करती है. डॉ. विग्मोर के अनुसार, किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी दूर करने में गेहूं के जवारे का रस किसी भी उत्तम टॉनिक से बेहतर साबित हुआ है |

प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक –
यह ऐसा प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक है जिसे किसी भी आयुवर्ग के स्त्री-पुरुष और बच्चे जब तक चाहे प्रयोग कर सकते हैं, इसी गुणवत्ता के कारण इसे ‘ग्रीन ब्लड’ की संज्ञा दी गयी है |
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण गेहूं को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया है. इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान रहता है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |
हरिद्वार स्थित ‘ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान’ के वैज्ञानिकों ने भी गेहूं की गुणवत्ता का लाभ जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए कई सरल और सस्ते प्रयोग किये हैं |

रोग प्रतिरोधक क्षमता –
इस संस्थान के शोध वैज्ञानिकों के अनुसार, गेहूं के ताजे जवारों (गेहूं के हरे नवांकुरों) के साथ थोड़ी सी हरी दूब और चार-पांच काली मिर्च को पीसकर उसका रस निकालकर पिया जाए तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि दूब घास सदैव स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग-बगीचों से ही लेना चाहिए |

संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं के जवारे उगाने का सरल तरीका भी बताया है. इसके लिए मिट्टी के छोटे-छोटे सात गमले लिये जाएं और उन्हें साफ जगह से मिट्टी से भर ली जाए. मिट्टी भुरभुरी और रासायनिक खाद रहित होनी चाहिए |

अब इन गमलों में क्रम से प्रतिदिन एक-एक गमले में रात में भिगोया हुआ एक-एक मुट्ठी गेहूं बो दें. दिन में दो बार हल्की सिंचाई कर दे. 6-7 दिन में जब जवारे थोड़े बड़े हो जाएं तो पहले गमले से आधे गमले के कोमल जवारों को जड़ सहित उखाड़ लें |

सुबह खाली पेट ले –
ध्यान रखें, जवारे 7-8 इंच के हों तभी उन्हें उखाड़ें. इससे ज्यादा बड़े होने पर उनके सेवन से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता. जवारे का रस सुबह खाली पेट लेना ही उपयोगी होता है |
ख्याल रखें कि जवारे को छाया में ही उगाएं. गमले रोज मात्र आधे घंटे के लिए हल्की धूप में रखें. जवारों का रस निकालने के लिए 6-7 इंच के पौधे उखाड़कर उनका जड़वाला हिस्सा काटकर अलग कर दें |
अच्छी तरह धोकर साफ करके सिल पर पीस लें. फिर मुट्ठी से दबाकर रस निकाल लें. ग्रीन ब्लड तैयार है |
इस रस के सेवन से हीमोग्लोबिन बहुत तेजी से बढ़ता है और नियमित सेवन से शरीर पुष्ट और निरोग हो जाता है.

बुढ़ापा दूर भगाये –
‘दूर्वा घास’ के बारे में आरोग्य शास्त्रों में लिखा है कि इसमें अमृत भरा है, इसके नियमित सेवन से लंबे समय तक निरोग रहा जा सकता है | आयुर्वेद के अनुसार, गेहूं के जवारे के रस के साथ ‘मेथीदाने’ के रस के सेवन से बुढ़ापा दूर भगाया जा सकता है |
इसके लिए एक चम्मच मेथी दाना रात में भिगो दें. सुबह छानकर इस रस को जवारे के रस के साथ मिलाकर सेवन करें |
इसके साथ आधा नींबू का रस, आधा छोटा चम्मच सोंठ और दो चम्मच शहद मिला देने से इस पेय की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है |
इस पेय में विटामिन ई, सी और कोलीन के साथ कई महत्वपूर्ण इंजाइम्स और पोषक तत्व शरीर को प्राप्त हो जाते हैं |

वृद्धावस्था को दूर भगाना हो तो जवारे का रस पियें

गेहूँ हमारे आहार का प्रमुख घटक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। अपने देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में गेहूँ की खेती होती है। अन्य अनाजों की अपेक्षा गेहूँ के दोनों के अतिरिक्त इसके छोटे – छोटे हरे ताजे – पौधे भी पोषण एवं रोगनाशक की दृष्टि से बहुत ही गुणकारी होते हैं। अनुसंधानकर्ता चिकित्सा विज्ञानियों ने इस संदर्भ में महत्वपूर्ण खोजें की हैं।
अपनी कृति ‘ हृाई सफर ‘ में अमेरिका की सुप्रसिद्ध चिकित्सक डाक्टर एन. विग्मोर ने गेहूँ की पोषक शक्ति एवं उसके औषधीय गुणों का स्वं पर किये गये अनुसंधानों एवं प्रयोगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनके अनुसार संसार का कोई ऐसा रोग नहीं जो गेहूँ के जवारे रस के सेवन से ठीक न हो सके। कैंसर जैसे घातक रोग भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में इसके प्रभाव से अच्छे होते पाये गये हैं। कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खाँसी, पीलिया, ज्वर , मधुमेह, वात व्याधि , बवासीर जैसे रोगों में भी गेहूँ के छोटे पौधों का रस लाभकारी सिद्ध होता है। इसके माध्यम डा. विग्मोर ने कितने ही कष्टसाध्य रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार किया और उन्हें स्वस्थ किया है।
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण ही गेहूँ को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया है। इसमें वे सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान होते हैं जो शरीर को स्वस्थ व तन्दुरुस्त बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं, यथा – प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल आदि। विश्लेषणकर्ताओं के अनुसार प्रति 100 ग्राम गेहूँ के आटे में नमी – 12.2 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 694 ग्राम, कैलोरी प्रोटीन – 12.1 ग्राम, वसा – 1.7 ग्राम, मिनरल्स – 2.7 ग्राम, रेशा – 1.09 ग्राम, कैल्शियम- 48 मि.ग्रा. फास्फोरस – 355 मि.ग्रा. , लोहा, 4.09 मि.ग्रा., कैरोटीन – 29 , थियामिन – 0.49 रिबोफ्लेविन – 0.17 मि.ग्रा. नियासिन 4.3 मि.ग्रा. और फोलिक एसिड – 0.12.1 मि.ग्रा. मात्रा में पाया जाता है।

वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने में गेहूँ के जवारे का रस किसी भी उत्तम टानिक से कम नहीं, वरन् अधिक ही उत्तम सिद्ध हुआ है। यह एक ऐसा प्राकृतिक टानिक है जिसे हर आयुवर्ग के नर – नारी जब तक चाहें प्रयोग कर सकते हैं। अंग्रेजी दवाओं – टानिकों का अधिक दिनों तक सेवन नहीं किया जा सकता, अन्यथा वे लाभ के स्थान पर नुकसान ज्यादा पहुँचाते हैं। परन्तु इस रस के साथ ऐसी कोई बात नहीं। पोषकता, गुणवत्ता एवं हरे रंग के कारण गेहूँ के पौधे के रस को ‘ग्रीन ब्लड’ की संज्ञा दी गयी है। गेहूँ के ताजे जवारे के साथ यदि थोड़ी – सी हरी दूब – दूर्बाघास एवं 2 – 4 दाने कालीमिर्च को पीसकर रस निकाला और उसका सेवा किया जाए तो पुराने से पुराना एलर्जिक रोग भी जड़ – मूल से नष्ट हो जाता है और शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होकर युवाओं जैसी स्फूर्ति आ जाती है। यहाँ ध्यान रखने योग्य विशेष बात यह है कि दूर्बाघास सदैव साफ-स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग, बगीचों, की ही प्रयुक्त की जानी चाहिए। इसे भी छोटे गमलों, क्यारियों, में गेहूँ की भाँति ही उगाया जा सकता है।

देर्वेहि अमृत सम्पन्ने शतमूले शंताकूरे। शतपातक संहर्वि शतमायुष्य वर्धिनी॥

अर्थात् दूर्वाघास में अमृतरस भरा है। इसके नित्य सेवन से सौ वर्ष तक निरोग रहकर जिया जा सकता है। प्राचीन ऋषियों ने इस सूत्र में दूब की रोग- निवारक व स्वास्थ्य – संरक्षक शक्ति का ही संकेत किया है।

गेहूँ के जवारे के रस के साथ – साथ यदि गेहूँ और मेथी दाने को चार – एक के अनुपात में, चार चम्मच गेहूँ व एक चम्मच मेथी दाना स्वच्छ पानी से धोकर एक गिलास में भिगो दिया जाए और 24 घंटे बाद उसका पानी छान कर पी लिया जाए तो वृद्धावस्था को कोसों दूर भगाया जा सकता है। इस जल में आधा नीबू का रस, एक चुटकी सोंठ चूर्ण व दो चम्मच शहद मिला देने से वृद्धावस्था दूर करने वाले विटामिन ई, विटामिन सी और कोलीन नामक तीनों तत्वों के साथ ही एन्जाइम्स, लाइसिन, आइसोल्यूसिन, मेथोनाइन जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्द्धक पौष्टिक तत्व भी शरीर को प्राप्त होते रहते हैं। यह पेय पाचक एवं शक्तिवर्धक होने से संजीवनी रसायन की तरह काम करता है। इसी के साथ यदि उक्त छने हुए गेहूँ व मेथी दोने को को कपड़े में बाँधकर अंकुरित कर लिया जाए और दूसरे दिन सुबह खाली पेट नाश्ते के स्थान पर खूब चबा – चबाकर सेवन किया जाए तो इससे न केवल पाचन सम्बन्धी विकार दूर होते हैं, वरन् शरीर भी हृष्ट-पुष्ट व बलिष्ठ बनता है। नीबू, कालीमिर्च व सेंधा नमक मिलाकर इसे स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।

जवारे का रसः बीमारी में अमृत एवं प्राकृतिक प्रतिरोधक शक्ति जगाने हेतु

गेंहूं के पौधे में ईश्वरप्रदत्त अपूर्व गुण है। हम लोग बारहों मास भोजन गेहूँ का प्रयोग करते हैं, पर उसमें क्या गुण हैं, यह हम नहीं जानते रोगनाशक हैं।
पिछली सदी में अमरीका की एक महिला डाक्टर एन. विगमोर ने गेहूं की शक्ति के सम्बन्ध में बहुत अनुसन्धान तथा अनेकानेक प्रयोग करके एक बड़ी पुस्तक लिखी है, जिनका नाम है Why Suffe? Answer…Wheat Grass Manna उन्होंने अनेकानेक असाध्य रोगियों को गेहूं के जवारे का रस देकर उनके कठिन से कठिन रोग अच्छे किये हंै। वे कहती है कि संसार में ऐसा कोई रोग नहीं है जो इस रस के सेवन से अच्छा न हो सके। कैंसर के ऐसे बड़े-बड़े रोगी उन्होेंने अच्छे किये हैं, जिन्हें डाक्टरों ने असाध्य समझकर जवाब दे दिया था और जो मरणप्रायः अवस्था में अस्पताल से निकाल दिए गए थे। यह ऐसी अदभुत हितकर चीज है। उन्होंने इस साधारण से रस से अनेकानेक भगंदर, बवासीर, मधुमेह, गठियाबाय, पीलियाज्वर, दमा, खांसी वगैरह के पुराने से पुराने असाध्य रोगी अच्छे किये हैं। बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने में तो यह रामबाण है। भयंकर फोड़ों और घावों पर इसकी लुगदी बाँधने से जल्दी लाभ होता है। अमेरिका के अनेकानेक बड़े-बड़े डाक्टरों ने इस बात का समर्थन किया है। अनेक लोग इसका प्रयोग करके लाभ उठा रहे हैं।

जवारे का रस के बनाने की विधि
आप सात बांस की टोकरी मंे अथवा गमलों मंे अच्छी मिट्टी भरकर उन मंे प्रति दिन बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया मंे अथवा कमरे या बरामदे मंे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
वह ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे और दो-तीन महीने मंे वह मरणप्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो जायेगी।
गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी उन्हें काम मंे लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः बारहों मास उगाया जा सकता है।

सावधानियाँ
रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
रस लेने के पूर्व व बाद मंे एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।
तीन घण्टे मंे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मंे कइयों को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है।
स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है।
कैलिफोर्निंया विश्वविद्यालय की शोध से प्रकट हुआ कि जवारे के रस में पी फोर डी वन नामक ऐसा ऐन्जाइम है जो दोषी डी एन ए की मरम्मत करता है। रक्त शोधन, यकृत से विषैले रयासनों को निकालने व मलशोधन मंे इसका बहुत योगदान है।डाॅ. हेन्स मिलर क्लोराॅिफल को रक्त बनाने वाले प्राकृतिक परमाणु कहते है। लिट्राइल से कैंसर तक को ठीक करने वाले तत्वों का पता लगा है। कोशिकाओं के म्यूटेशन को रोकता है। अर्थात् कार्सिनोजेनिक रसायनों जैसे बेन्जोंपायरीन को कम करता है। इससे कैंसर वृद्धि रूकती है। चीन में लीवर कैंसर इससे ठीक हुए है।
लगभग एक किलो ताजा जवारा के रस से चैबीस किलो अन्य साग सब्जियों के समान पोषक तत्व पाये जाते है।
डाक्टर विगमोर ने अपनी प्रयोगशाला मंे हजारों असाध्य रोगियों पर इस जवारे के रस का प्रयोग किया है और वे कहती हैं कि उनमें से किसी एक मामले मंे भी उन्हें असफलता नहीं मिली है।

शरीर को निरोगी बनाए ‘रसाहार’

जनजातिय समुदाय के लोग जड़ी-बूटियों को तोड़कर, उसे पीसकर उसका उपयोग अपने स्वास्थ्य के लिए करते हैं, लेकिन अब यह चलन शहर की ओर भी बढ़ने लगा है, कई तरह की जड़ी-बूटियों का उपयोग शहरी लोग भी करने लगे हैं। चूंकि जड़ी-बूटिंयों का स्वाद खाने में अजीब लगता है, इसलिए शहरों में इसे पीसकर इसका रस निकाला जाने लगा है। जो आसानी से मरीज के शरीर में पहुंचकर अपना असर दिखाता है। इसी को शहरी भाषा में रसाहार प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाने लगा है। इसमें रोगी को केवल आहार सम्बन्धी नियमों को दृढ़ता से पालन करते हुए कुछ भिन्न-भिन्न स्वाद वाले रस पीने पड़ते हैं। इसी मुद्दे पर रसाहार शोध समिति की परामर्शदात्री पूर्णिमा दाते से खास बातचीत की गई। उनसे रसाहार के उपयोग सहित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। प्रस्तुत है कुछ अंश-

प्रश्न – कौन-कौन से रसाहार सामान्यतः लोगों के काम आते हैं ?

– गेंहू के जवारे, गिलोए, ग्वारपाठा, शीषम, पीपल, अदरक, कड़वी नीम, मीठी नीम, बेलपत्र, अडूसा, अपामार्ग, गेंदे के फूल या पौधे की पत्तियां, हरसिंगार, पोदीना, पान, अगिया, पर्णबीज, मुलेठी, हल्दी, आंवला, मकोय, सहिजन, मेथी, मूली, पालक, टमाटर, मेंथा, गुड़मार, तुलसी, निर्गुण्डी, अमलतास, हड़जोड़, जामुन आदि।

प्रश्न – यह कैसे जानें कि किस मौसम में कौन सा रस लेना चाहिए ?

– सामान्यतः जो पेड़-पौधे जिस मौसम में आसानी से उपलब्ध होते हैं, उसी मौसम में मानव शरीर को उसकी आवश्यकता भी होती है। जैसे आंवला अष्टमी आते ही इसका उपयोग शुरू हो जाता है। जब तक ताजे आंवले मिलते रहें, तब तक उसका उपयोग करें, फिर आंवले के चूर्ण का उपयोग करें। छट पूजा के बाद कच्ची हल्दी का उपयोग होता है। उसे वसन्त पंचमी या अधिक-से-अधिक होली तक उपयोग में ला सकते हैं। भुई आंवला वर्षा ऋतु में अधिक आता है और उसी समय लिवर सम्बन्धी रोग भी अधिक होते हैं। कुछ औषधीय रस ऐसे होते हैं, जो बारहों महीने उपयोग में लाए जा सकते हैं। जैसे ग्वारपाठा, गेंहू के जवारे, नारियल पानी इत्यादि।

प्रश्न – पत्तियों का उपयोग कितनी मात्रा में हो?

– आवश्यकतानुसार 5 से 50 पत्तियां। उदारहण के लिए पोदीना, तुलसी, कड़वी नीम, मीठी नीम आदि की 25 से 50 पत्तियां लेते हैं, क्योंकि ये छोटी होती हैं। पीपल, अडूसा जैसे बड़े पत्ते 5 से 10 लिए जाते हैं। भुई व आंवले के पौधे जड़ समेत उखाड़ कर 5 से 10 पौधे लेना चाहिए। गेंहू के जवारे 100 ग्राम एक जन की एक दिन की मात्रा होती है। आंवले 4 या 5 लेने पर 50 मि.ली. रस बन जाता है। हल्दी का रस 25 मि.ली., अदरक या लहसून का रस 2 चम्मच, गिलोए का तना 8 से 9 इंच लम्बा और ग्वारपाठे की पत्तियां छीलकर अंदर का गुदा हाफ कप 50 मि.ली. के बराबर होता है।

प्रश्न – पत्तियों को उपयोग में लाने का क्या तरीका है?

– पत्तियों को उपयोग में लाने से पहले उसे 2-3 पानी से अच्छी तरह धो लें। पूरा पानी निथारने के बाद आदर्श तरीका तो यह है कि सिलबट्टे पर पत्तियां पीसकर आवश्यकतानुसार पानी डालकर छान कर उसका रस निकाल लें। लेकिन आजकल मिक्सरों से रस निकाला जाता है।

प्रश्न – रस बनाने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला पानी कैसा हो?

– रस बनाने के लिए हमेशा उबला हुआ पानी उपयोग में लाएं। यदि एक रात पहले पानी उबाल कर साफ धुले तांबे के बर्तन में रखकर उसे रात भर चुम्बकित कर लें तो और भी अच्छा होगा।

प्रश्न – कौन सा समय रसाहार के लिए अच्छा है?

– रसाहर का सबसे अच्छा समय सुबह 6 बजे से 9 बजे के बीच का है। शरीर उसी समय स्वाभाविक रूप से मल का त्याग करता है। उसी समय शरीर में पोषक रस भी पहुंचाए जाने चाहिए। इससे पाचन भी सरलता से होते हैं और क्षारीय होने के कारण ये रक्त की पीएच सही बनाए रखते हैं।

प्रश्न – रसाहर के पहले और बाद में खान-पान के क्या नियम हैं?

– रसाहार के पहले एकदम खाली पेट रहना चाहिए। सुबह पानी में नींबू निचोड़ कर ले सकते हैं। चाय के बिना न रह सकें तो काली चाय पी सकते हैं। रसों के पाचन का समय आधा या 2 घंटे का होता है। सभी फलों और पत्तियों के रस आधे घंटे में पच जाते हैं, जबकि सब्जियों के रसों को पचने में 2 घंटे का समय लगता है। प्रत्येक रस के पीने के बाद उनके पाचन का समय उन्हें अवश्य मिलना चाहिए, तभी उनके पूरे लाभ लिए जा सकते हैं।

प्रश्न – क्या रसाहार शुरू करने के बाद दूसरे औषधियों का उपयोग छोड़ दें?
– रसाहार शुरू करने के बाद सभी विटामिन की गोलियां लेनी बन्द कर देना चाहिए। दर्द निवारक और तीव्र रोगों को दबाने वाली औषधियां अत्यावश्यक हो तो ही लें। जीर्ण रोगों से संबंधित औषधियां जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थायरायड अथवा अन्य अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों के रोगों संबंधी औषधियां यथावत लेते रहें।

प्रश्न – रस का स्वाद ठीक न लगे तो उसमें क्या मिलाना चाहिए?

– रस को पीने योग्य बनाने के लिए उसमें आंवला, नींबू, काली मिर्च, शहद मिला सकते हैं। नमक या कोई अन्य मसालों का उपयोग अथवा दूध व दही आदि उसमें न मिलाएं।

प्रश्न – रस बनाने के बाद कितनी देर तक उसका उपयोग उचित होगा?

– किसी भी रस को बनाए जाने के दो घंटे के भीतर उन्हें पी लेना चाहिए, क्योंकि बाद में उनके गुण कम हो जाते हैं। फल अथवा गेहूं के जवारे के रस के तो 6 घंटे बाद ही खराब होने की संभावना रहती है। अन्य रस भी 24 घंटे बाद खराब हो सकते हैं। गिलोए, ग्वारपाठा, आंवला, तुलसी आदि कुछ रस 24 घंटे फ्रिज में रखे जा सकते हैं।

प्रश्न – रसाहार का नियमित उपयोग कब नहीं करना चाहिए?

– शरीर की अत्यंत जीर्ण अवस्था में रोगी को एकदम से पूरी की पूरी मात्रा का रस नहीं देना चाहिए। प्रतिदिन आधी मात्रा से धीरे-धीरे रोगी को रस देना शुरू कर सकते हैं। 10 दिनों बाद आवश्यकतानुसार रसो की संख्या बढ़ाई जा सकती है। छोटे बच्चों के साथ भी यही नियम है।

प्रश्न – रसाहार के लाभ कितने दिनों में दिखाई देने लगते हैं?

– शरीर क्रिया विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में नई लाल रक्त कणिकाएं बनने में चार महीने का समय लगता है। आयुर्वेद में भी औषधीय प्रभावों के 40 दिन, 4 माह या सवा साल में दिखाई देने के उदाहरण मिलते हैं। मेरा अनुभव भी यही कहता है कि रसाहार प्रारंभ करते ही 8-10 दिनों में पाचन तंत्र में परिवर्तन अनुभूत होने लगते हैं, लेकिन रोग पर होने वाला वास्तविक प्रभाव 4 माह में ही दिखाई देता है। जीर्ण रोगों के ठीक होने का एक सामान्य नियम है कि रोग जितना पुराना है, ठीक होने में उससे दोगुना समय लगता है।

प्रश्न – रसाहार से कौन-कौन से रोगों को ठीक किया जा सकता है?

रोग चाहे कोई भी हो, उनके कारण निश्चित है। हमारी विवेकहीन दिनचर्या, अपने शारीरिक अंगों का आवश्यकता से अधिक या कम उपयोग, वंशानुगत रोग, तनाव, पोषक तत्वों की कमी और इन सब के कारण शरीर में होने वाला विजातीय तत्वों का जमावड़ा। रसाहार से पोषक तत्वों की पूर्ति होती है, वात, पित्त, कफ का संतुलन होता है, शरीर का शोधन होता है, विजातीय तत्व शरीर से निकाल बाहर किए जाते हैं और शरीर निर्मल हो जाता है। इसलिए रसाहार के साथ योग और विवेकपूर्ण दिनचर्या हो तो अंगों की स्थाई विकृति को छोड़कर सभी रोग ठीक किए जा सकते हैं।