क्या आप जानते हैं?
चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है।
विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार गेहूँ के जवारों में अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है।
गेहूँ मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र से आई एक घास है जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है। गेहूँ की रोटी भारत के लगभग हर प्रदेश में किसी न किसी रूप में खाई जाती है। विशेषरूप से उत्तरी भारत में दिन का प्रारंभ अनेक घरों में गेहूँ से निर्मित ब्रेड या पराठों के साथ ही होता है। इसके अतिरिक्त इससे अनेक प्रकार के मिष्ठान्न तथा स्वास्थ्यप्रद भोजन भी बनाए जाते है इस कारण गेहूँ को “अनाजों का राजा” माना जाता है।
विश्व में कुल कृषि भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है यद्यपि एशिया में मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है, तो भी गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। यह विश्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। प्रति वर्ष इसका उत्पादन ६२.२२ करोड़ टन से भी अधिक होता है। चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन ११-१२ प्रतिशत प्रोटीन होता हैं। गेहूँ मुख्यत: विश्व के दो मौसमों, यानी शीत एवं वसंत ऋतुओं में उगाया जाता है। शीतकालीन गेहूँ ठंडे देशों, जैसे यूरोप, सं॰ रा॰ अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस राज्य संघ आदि में उगाया जाता है जबकि वसंतकालीन गेहूँ एशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाया जाता है। वसंतकालीन गेहूँ १२०-१३० दिनों में परिपक्व हो जाता है जबकि शीतकालीन गेहूँ पकने के लिए २४०-३०० दिन लेता है। इस कारण शीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक हाती है।
भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन विशेषतः पंजाब, गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है। वर्षा ऋतु में खरीफ की फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में बोया जाता है। अच्छी सिचाई वाले रबी की फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली, पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि खरीफ की बिना सिचाई वाली वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है। सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है।
गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है। उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ (बालियाँ) लगती है, जिसमे गेहूँ के दाने होते है। गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है।
गेहूँ की अनेक किस्में होती है जिनमें कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है। रंगभेद की दृष्टि से गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है। इसके अतिरिक्त बाजिया, पूसा, बंसी, पूनमिया, टुकड़ी, दाऊदखानी, जुनागढ़ी, शरबती, सोनारा,कल्याण, सोना, सोनालिका, १४७, लोकमान्य, चंदौसी आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है। इन सभी में गुजरात में भाल-प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर- मालवा के गेहूँ प्रशंसनीय है।
गेहूँ के आटे से रोटी, सेव, पाव रोटी, ब्रेड,पूड़ी, केक, बिस्कुट, बाटी, बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है। इसके अतिरिक्त गेहू के आटे से हलुआ, लपसी, मालपुआ, घेवर, खाजे, जलेबी आदि मिठाइयाँ भी बनती है। गेहूँ के पकवानों में घी, शक्कर, गुड़ या शर्करा डाली जाती है। गेहूँ को ५-६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पौष्टिक हलुआ बनाया जाता है, गेहूँ का दालिया भी पौष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है, गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है। गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है, और उसकी रोटी चपाती, बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है। घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती। सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है। गेहूँ से आटा, मैदा, रवा और थूली तैयार की जाती है। गेहूँ में मधुर, शीतल, वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ, कफकारक, वीर्यवर्धक, बलदायक, स्निग्ध, जीवनीय, पौष्टिक, रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है। घाव के लिए हितकारी होने के कारण आटे की पुलटिस के रूप में गेहूँ का प्रयोग होता है।
गेहूँ के जवारे या गेहूँ की भुजरियाँ
गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है। यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है। अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें केवल गेहूँ के रस में ही मिल जाता है। गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है जिनके सेवन से कब्ज व्याधि और गैसीय विकार दूर होते हैं, रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े, फुंसी, चर्मरोग आदि भी दूर हो जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बाँधने से शीघ्र लाभ होता है। श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दमे जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है। गेहूँ के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है। इसके अतिरिक्त दाँत व हड्डियों की मजबूती के लिये, नेत्र विकार दूर करने और नेत्र ज्योति बढाने के लिये, रक्तचाप व ह्रदय रोग से दूर रहने के लिये, पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकालने के लिये तथा मासिक धर्म की अनियमितताए दूर करने के लिये भी जवारे का रस के प्रयोग की बात कही जाती है।
जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें, इसे फ्रिज में रखकर कभी भी प्रयोग न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है। जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें। सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है। रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके। जब तक गेहूँ के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें, ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे।
गेहूँ के पौधे का सीधे सेवन भी किया जाता है। गेहूँ के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े, साथ ही वह स्थान हवादार भी हो, यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है। पहले दिन पहले गमले में उत्तम प्रकार के गेहूँ के दाने बो दें इसी तरह दूसरे दिन दूसरे गमले में, फिर तीसरे गमले में…आदि। यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे, आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें, मिक्सी में भी रस बना सकते है। उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे। खाली गमले में पुनः गेहूँ के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है इससे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है लेकिन हर शरीर कि अपनी अलग तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लें।हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूँ के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
गेहूँ के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूँ के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूँ के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है। यहाँ एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूँ के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।
यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूँ के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूँ के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूँ के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती हैैैै, क्योंकि गेहूँ के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है। इसे प्रातःकाल स्वल्पाहार के रूप में भी ग्रहण कर सकते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि कुछ मांसाहारी प्राणी जैसे कुत्ते व शेर मौसम बदलने पर पाचक अंगों की आंतरिक सफाई करने के लिए घास का सेवन करते हैं और उल्टी व दस्त के माध्यम से शरीर की आंतरिक सफाई प्राकृतिक रूप से कर लेते हैं। आंतों में पड़ा हुआ खाना सड़ता है,इस वजह से टॉक्सीन पैदा होते हैं और ये टॉक्सीन रक्त को दूषित करते हैं और इस वजह से मनुष्य कैंसर का शिकार हो जाता है। इसलिए,गेहूं के जवारों के सेवन से पोषण ही प्राप्त नहीं होता,समस्त पाचन अंगों की प्राकृतिक सफाई भी हो जाती है।
प्रयोग विधि :-
जवारों को उनके आधार से काट लें। काटने के पश्चात अच्छी तरह से धो लें। धोने के पश्चात पुनः कैंची से बारीक-बारीक काट लें। काटने के पश्चात उसे मिक्सर में थोड़ा पानी मिलाकर पीसकर छान लें। अब इसका सेवन कर लें। इसे सुबह-सुबह खाली पेट लें। इसके सेवन के पश्चात १ घंटे तक कोई भी आहार व पेय पदार्थ न लें। प्रारंभ में २५-३० मिली गेहूँ के जवारों का प्रयोग करना चाहिए। बाद में इसकी मात्रा सेवन करने वाले की पाचन क्षमता के अनुसार २००-३०० मिली तक बढ़ाई जा सकती है। जिन्हें पाचन संबंधी तकलीफ है, उन्हें जवारों का रस पीने के स्थान पर उसे चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि उनके पाचन संबंधी रोग ही दूर नहीं होते हैं वरन्* गेहूँ के जवारे आसानी से पच भी जाते हैं। आँतों व आमाशय के अल्सर में पत्तागोभी का रस व गेहूँ के जवारे का रस चमत्कारिक परिणाम देता है
सावधानी : –
गेहूँ के जवारों का रस निकालने के पश्चात अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्व समय बीतने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि गेहूँ के जवारों में पोषक तत्व सुरक्षित रहने का समय मात्र ३ घंटे है। गेहूँ के जवारों को जितना ताजा प्रयोग किया जाता है , उतना ही अधिक उसका स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन प्रारंभ करते समय कुछ लोगों को दस्त, उल्टी, जी घबराना व अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, किंतु उन लक्षणों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है केवल इसकी मात्रा को कम या कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर सकते हैं।
गेंहूँ के जवारे का रस अमृत के समान, प्रक्रति का अनमोल उपहार, आसानी से उपलब्ध होने वाला, शीघ्रता से असर करने वाला, शारीरिक कमजोरी को दूर करने वाला, शक्तिवर्धक. जटिल रोगों के लिए बेशकीमती महा-औषधि, तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता के गुणों से भरपूर है। गेहूँ के जवारे को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है। इसमें क्लोरोफिल का सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं। और क्लोरोफिल के अलावा अन्य सैकड़ो पोषक तत्व् उपस्थित हैं। ज्वारे में विटामिन-डी और बी-12 के ईलावा सभी विटामिन (ई-बी.1, 2, 3, 5, 6, 8 और 17-सी-ई तथा के) प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। उसमें उपस्थित विटामिन-बी-17 (लिट्राइल) को कई आरोग्यशास्त्री कैन्सर को नष्ट करने का एक मात्र उपाय मानते हैं। सभी स्वस्थ मिट्टी में पाये जाने वाले 100 से अधिक खनिजों सहित गेंहूँ के जवारे में केल्शियम, सोडियम, मेग्नीशियम, पोटेशियम, आयोडीन, सेलेनियम, लौह, जिंक और अन्य सभी आठ आवश्यक अमीनो एसिड और प्रोटीन होते हैं। 7 से 10 दिन पुरानी गेंहूँ के जवारे के रस में अन्य साग सब्जियों से अधिक एंजाइम शामिल हैं। गेहूँ के ज्वारे का रस और मानव-रक्त दोनों की रासायनिक संरचना पी.अच्.( pH)7.4 व क्षारीयता लगभग एक जैसी है। इसीलिए गेहूँ के ज्वारे का रस शीघ्रता से पचता है और रक्त में अवशोषित हो जाता है और शीघ्र शरीर के उपयोग में आकर शरीर को स्वस्थ करने लगता है। गेहूँ के जवारे के रस में रक्त और शरीर शोधन करने की अदभुत क्षमता है
गेंहूँ के जवारे के रस के नियमित प्रयोग से अनिद्रा, त्वचा रोग, संधि वात, प्रदर रोग, बालों के रोग, पीलिया, जुकाम, मोटापा, पथरी, बवासीर, अस्थमा, एसिडीटी, कब्ज, खून की कमी (अनीमिया) गठिया एवं कैंसर जटिल जैसे रोगों से बच सकते हैं। गेहूँ के ज्वारे का रस कैंसर की कोशिकाओं को ढूंड-ढूंड कर नष्ट करता है। तथा उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है और बुढ़ापे की कमजोरी को आने से रोकता हैं। तथा शारीरिक सौंदर्य और लम्बे समय तक चेहरे पर तेज भी कायम रखता हैं। गेहूँ के जवारे के रस को ग्रीन ब्लड (हरा खून) भी कहा जाता है। गेहूं घास का रस खून को साफ़ करता है तथा जहरीले घटकों (विषाक्त पदार्थों) जो की खून में जमा है उनको निकाल बहार करता है।
गेहूँ के जवारे के रस से (मौजूद क्लोरोफिल से) एंटीसेप्टिक लाभ के लिए, संक्रमण को बेअसर व काबू में करने के लिए, घावों को ठीक करने के लिए, कटी फटी त्वचा को जल्द ठीक कर के जोड़ने के लिए, पसीने की दुगंध को भगाने के लिए आंतो के घावों को चंगा करने के लिये योनि संक्रमण से छुटकारा पाने के लिए, टाइफाइड बुखार को कम करने करने के लिए, नाडी तत्र को ठीक करने के लिए, सूर्य विकरनो से होने वाले रोगों के इलाज करने के लिए, कान की सूजन को ठीक करने के लिए, गले में खराश के लिए तथा आंतो को सुचारू और सवस्थ करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। गेहूँ के जवारे के रस में क्लोरोफिल (जीवाणुरोधी) है जो शरीर के अंदर और बाहर औषधीय मरहम के तोर इस्तेमाल किया जाता है। नवरात्रि में नौ दिनों तक अक्सर हर घर में गेंहू के जवारे उगाने का रिवाज था। जब मिटटी के घड़े का पानी पिया जाता था तब इन दिनों घड़े में कुछ गेंहू के साफ़ जवारे डाल दिए जाते थे ताकि गेंहू के जवारो से घड़े का पानी शुद्ध हो कर विषाणु रहित हो जाए।
गेहूँ के ज्वारे के रस के नियमित सेवन से सहनशक्ति बढ़ती है, यौन ऊर्जा, विचारों की स्पष्टता में सुधार आता है। नशे की लत कम कर देता है यह भी त्वचा की बनावट और बड़ी उम्र के सूखेपन में सुधार होता हैं, और क्रोनिक रोग (पुराणी बीमारियाँ) और इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) मजबूत होती है। गेहूँ के ज्वारे चबाने से गले की खारिश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है। रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है। स्त्रियों को ज्वारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गंध और खुजली में भी आराम मिलता है। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता है और त्वचा में चमक आती है। अंकुरित गेंहूँ का तेल मांसपेशियों की समस्या में बहुत उपयोगी है। अंकुरित गेंहूँ का तेल प्रसव के बाद त्वचा पर बने निशानों को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय होता है।
गेंहू के जवारे के रस में भरपूर क्लोरोफिल होता है,क्लोरोफिल शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, जो शरीर को ऑक्सीजन से लबालब भर देता है। जिससे कैंसर कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और ऑक्सीजन और कैंसर कभी एक साथ नहीं रह सकते और ऑक्सीजन की अधिकता से कैंसर की कोशिकाये मरने लगती है। अगर नियमित इस रस का सेवन किया जाए तो कैंसर की गाँठे तक गल जाती है।
गेहूँ के जवारों का उपयोग :—
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से शरीर की सुरक्षा प्रणाली (इम्यून-सिस्टम) मजबूत होता है।
गेहूँ के जवारों का रस, पावडर, अंकुरित गेंहू का तेल व टेबलेट आदि बाजार में भी मिल जाते है।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से जोड़ो, नींद, त्वचा, मासिक धर्म आदि की बीमारी से निजात मिलती है।
गेहूँ के ज्वारे के रस का सेवन करने से रक्त की शुद्धि व रक्त में हिमोग्लोबिन की मात्रा भी संतुलित होती है।
गेहूँ के जवारे चटनी के रूप में, सलाद के रूप में, रस के रूप में, और गेंहू को अंकुरित कर प्रयोग किया जाता है।
विटामिन ई की वजह से अंकुरित गेंहू मांसपेशियों, रक्त प्रवाह, आँखों और साँस के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी, कैंसर, थैलेसिमिया, मधुमेह (शुगर) आदि बीमारियों की रोकथाम होती है।
सोराइसिस के लिए अंकुरित गेंहूँ का तेल व अरंडी का एक-एक चम्मच तेल लें कर इसमें 50 मि.ली. सूरजमुखी का तेल मिलाकर त्वचा पर मले।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से कब्ज, अल्सर, कोलाईटीस (आंव), बवासीर, अम्लपित्त आदि पेट सम्बन्धी सभी बीमारीयों के उपचार में मदद मिलती है।
गेहूँ के ज्वारे के रस का सेवन शरीर में रक्त और पोषक तत्वों की कमियों (अनीमिया) को अति शीघ्रता से पूरा करता है, तथा शरीर के वजन को संतुलित करता है।
रोगी को रोज सुबह-शाम गेंहू के जवारे का ताजा रस पिलाने पर आप देखेंगे कि गंभीर रोग भी दस बीस दिन के बाद ठीक होने लगेगे और दो-तीन महीने में मर्त समान प्राणी भी एकदम रोग मुक्त और स्वस्थ हो जाता है।
गेहूँ के जवारे का रस और क्लोरोफिल :—
क्लोरोफिल में शरीर के प्रतिकूल बैक्टीरिया को रोकने की क्षमता होती हैं।
यह लीवर की शुद्धि करता है और शरीर में जले की जलन को कम करता हैं।
यह उच्च रक्तचापज को कम करता है और कोशिकाओं का विस्तार करता है।
यह कीटाणुरोधी हैं, कीटाणुओं को नष्ट करता है और उनके विकास को रोकता है।
गेहूँ के ज्वारे का क्लोरोफिल श्रेष्ट है, क्लोरोफिल से हमें मेग्नीशियम प्राप्त होता है।
गेहूँ के ज्वारे का रस नियमित पीने से एग्जीमा और सोरायसिस भी ठीक हो जाते हैं।
गेहूँ के जवारे का रस तुरंत पच जाता है और शरीर की बहुत कम ऊर्जा का क्षय होता है।
23 किलो चुनिन्दा साग-सब्जियों से प्राप्त पोषण केवल एक किलो ज्वारे से प्राप्त प्राप्त हो जाता है।
गेहूँ के ज्वारे में भरपूर ऑक्सीजन होती है। मस्तिष्क और संपूर्ण शरीर को ऊर्जावान और स्वस्थ रखता है।
कान में कोई भी रोग होने पर गेंहू के जवारे का रस पीने और थोड़ी सी बूंदे कान में डालने से आराम आता है।
घास का रस, जो अनिश्चित काल से शाकाहारी पशुओं को जीवित रखने के लिए पूरक आहार माना जाता है।
गेहूँ के जवारे के रस के नियमित प्रयोग से लोगों को 30 साल पुरानी बीमारियों से भी निज़ात मिल जाती है।
अगर बांझ स्त्रियों को जवारे का रस हर रोज पिलाया जाए तो कुछ ही समय में उनका बांझपन दूर हो जाता है।
गेहूँ के जवारे सभी घासों में श्रेष्ठ है। गेहूँ के ज्वारे के रस से मनुष्य को हर तरह का जरुरी पोषण मिल जाता है।
गेहूँ के ज्वारे के ताजा रस का नियमित सेवन से एग्जीमा और सोरायसिस जसे जटिल रोग भी ठीक हो जाते हैं।
गेहूँ के जवारे से प्राप्त क्लोरोफिल जो कि टिसूज (ऊतकों) में मिलकर उन्हें परिष्कृत और उन्हें खत्म करता है।
अगर बच्चे को भी रोजाना लगभग 5 बूंदे इस रस की सेवन कराई जाए तो बच्चा सुन्दर और स्वस्थ बन जाता है।
गेहूँ के जवारे के रस में कच्चा क्लोरोफिल उपलब्ध होता है इसे बिना किसी भी हानी या खतरे के पिया जा सकता है
ज्वारे के रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों के सफाई और मरमत होती है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
लम्बे समय तक गेंहूँ के जवारे का सेवन किया जाये तो कील- मुहाँसों तथा दाग, धब्बे और झाइयां स्वयं साफ हो जाते हैं।
घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को निकल बहार करता है।
गर्भ वती नारी को रोजाना गेंहू के जवारे का रस पिलाने से उसका बच्चा बहुत ही सुन्दर, स्वस्थ और बुद्धिमान पैदा होता है।
गेहूँ के ज्वारे का रस एक सम्पूर्ण आहार है। केवल गेहूँ के ज्वारे का रस पीकर ही मनुष्य का पूरा जीवन स्वस्थ बीत सकता है।
अल्सर, वेरिकॉज-वेइन्स, वेरिकॉज-अल्सर और आतों की सूजन इत्यादि रोगों में गेंहू के ज्वारे के रस का उपयोग किया जाता है।
यह आर्थ्राइटिस (जोड़ो के दर्द) को ठीक करता है, पेट और आंतो की शुधि करता है और आंतों के लाभप्रद कीटाणुओं को भी पोषण देता हैं।
यह ताजा रस शरीर से हानिकारक पदार्थों (टॉक्सिन्स) को, भारी धातुओं और शरीर में जमा दवाओं के अवशेष को निकाल बहार करता है।
यह ताजा रस कब्ज ठीक करता है, पाचन शक्ति को बढ़ाता है। ज्वारे के रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों का शोधन होता है।
यह उच्च रक्तचाप कम करता है यह मोटापा कम करता है यह भूख को नियमित करता है, शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है।
यह ताजा रस समस्त रक्त संबन्धी रोगों के लिए रामबाण औषधि है। थोड़ी देर गेहूँ के ज्वारे को दांतों से चबाने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
गेंहू के जवारे के ताजा रस से प्राप्त क्लोरोफिल रक्त बनाता है रोग पैदा करने वाले जीवाणु को नष्ट करता है और उनके विकास को रोकता है।
ज्वारे का ताजा रस पीने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते और शरीर को स्वस्थ, ऊर्जावान, सहनशील, शांत और प्रसन्न चित् बनाता है।
गेंहू के जवारे का रस का हर दिन सेवन करने से त्वचा स्वस्थ और चमकदार रहती है बालों का गिरना रुकता है और नाखूनों के लिए भी अच्छा होता है।
यह मोटापा कम करता है क्यों कि यह भूख कम करता है, बुनियादी रसायनिक प्रतिक्रियाओं (मेटाबोलिस्म) दर और शरीर में रक्त के संचार को बढ़ाता है।
यह ताजा रस दांतों को सड़न से बचाते है, दांत का दर्द ठीक करता है। और शरीर को दुर्गंध रहित रखता है। इसके गरारे करने से गले की खारिश ठीक हो जाती है।
क्लोरोफिल कई पौधों में पाया व निकला जाता है, लेकिन गेहूँ के जवारे का रस इन सब में श्रेष्ट है क्योंकि इसमें मनुष्य के लिए आवश्यक 92 % खनिज तत्व पाए जाते है।
ज्वारे के रस का उपयोग गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभ देता हैं। पायोरिया, चर्मरोग, मस्तिष्क का रक्तस्राव क्षय, हृदय-विकार, रक्त नाड़ी तंत्र के परवाह को नियंत्रित करता है।
गेंहू के जवारे के रस का नियमित सेवन से गैस का रोग, एसिडिटी, डायबिटीज, पेट के कीड़े, चमड़ी के रोग, पथरी, मासिक धर्म समय से ना आना, दिल के रोग, कैंसर आदि में लाभ होता है।
गेहूँ के जवारे के रस में मौजूद क्लोरोफिल में उच्च मैग्नीशियम एंजाइम होते है जो कि सेक्स हार्मोन को पुन: सक्रीय करता है जिससे स्त्री-पुरुष और पशुओं की प्रजनन शक्ति पुन: जाग्रत होती है।
मैग्नेशियम की कमी से महिलाओं में पाँवों की मांसपेशियाँ कमजोर होना, पाँवों में बिवाइयां फटना, एकाग्रता में कमी, चिडचिडापन और मासिक-धर्म सम्बन्धी कई परेशानियाँ शुरू हो जाती है।
गेहूँ के जवारे के रस में मौजूद क्लोरोफिल में लाल रक्त कोशिकाओं को पुन: निर्माण करने की क्षमता होती हैं। 4-5 दिन के सेवन करने से शरीर में आई कमी लाल रक्त कोशिकाओं की पूर्ति हो जाती है।
गेहूँ के जवारे के रस में प्रचुर मात्रा में श्रेष्ट क्लोरोफिल उपलब्ध होता है। क्योंकि क्लोरोफिल के अलावा इनमें 100 से अधिक अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। गेहूँ के जवारे के रस से किसी भी अन्य तत्व की तुलना में अधिक सूर्य प्रकाश ऊर्जा और भरपूर ऑक्सीजन भी मिलती हैं।
गेहूँ के ज्वारे के रस के सेवन से नशे की लत घटने लगती है, प्रजनन क्षमता बेहतर बनती है, जहरीले या शरीर के लिए नुकशान दायक बैक्टीरिया के विकास को रोकती है। यह दिल, दिमाग, मांसपेशियों, धमनियों, जोड़ों, हड्डियों, त्वचा, बाल, हार्मोनस, दृष्टि, पाचन शक्ति, गुर्दे, जिगर आदि शरीर की सभी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी सुद्र्ड बनाती है।
मेग्नीशियम से लाभ जो हमें गेंहू के जवारे से मिलता है:—
हमारे शरीर की हर एक कौशिका में सूक्ष्म मात्रा में लगभग 50 ग्राम मेग्नीशियम होता है।
क्लोरोफिल कई रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं को नष्ट करता है और उनके प्रसार को रोकता है।
मेग्नीशियम जो की हमारी हड्डियों के निर्माण तथा नाड़ियों और मांसपेशियों को तनाव रहित रखता है।
शरीर में लगभग तीन सौ ऍन्जाइम्स होते है जिनकी सक्रियता के लिए मैग्नेशियम अत्यंत आवश्यक है।
कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है।जिसे यह दुरुस्त करता है
क्लोरोफिल लीवर को शुद्ध और मजबूत करता है। यह रक्त बनाता है, आंतों के लाभप्रद जीवाणुयों को पोषण भी देता हैं।
यह शरीर में जलन को कम करता हैं गठिया, पेट सम्बन्धी शोथ, आंत्र शोथ, गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभदायक हैं।
घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक है। यह फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को विसर्जन करता है।
मैग्नेशियम शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, नाडी तंत्र और मांसपेशियों की कार्यशीलता के लिये जरुरी है।
मैग्नेशियम रक्तचाप तथा मधुमेह को नियमित करता है। अधिक शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम की आवश्यकता है।
नोट:-
शुरू में रस पीने से परेशानी हो तो कम मात्रा से धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें।
ज्वारे का ताजा रस सामान्यतः 60-120 एमएल प्रति दिन खाली पेट सेवन करना चाहिये।
यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो 30-60 एमएल रस दिन मे तीन चार बार तक ले सकते हैं।
रस निकालकर तुरंत उपयोग करें। तीन घण्टे में जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त होने लगते हैं।
रस में अदरक अथवा खाने वाला पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
इसे गिलोय, लोकी, नीम के पत्तो व तुलसी के पत्तों के रस के साथ भी मिल कर लिया जा सकता है।
रस लेने के पूर्व व बाद में एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें। आधे घंटे में यह रक्त में घुल मिल जाता है।
रस को धीरे-धीरे घूंट घूंट करके पीना चाहिए और सादा भोजन ही लेना चाहिए तथा तली हुई वस्तुएं न खाए।
कुछ लोगों को शुरु-2 में उल्टी-दस्त हो सकते है तथा सर्दी महसूस हो सकती है। यह सब रोगी होने के लक्षण है।
खटाई ज्वारे के रस में मौजूद एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है। इसमें नमक, चीनी आदि भी नहीं मिलाना चाहिये।
इसे खट्टे रसों (नीबू, संतरा, मौसमी) आदि खट्टे रसो को छोड़कर अन्य फलों और सब्जियों के रस के साथ मिला कर भी ले सकते है।
प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है। गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन्? अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूंके जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।
गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।
यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है। यदि किसी असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है