असमय आने वाले वृद्धत्व को रोकने के लिए

💁🏻 पहला प्रयोगः त्रिफला एवं मुलहठी के चूर्ण के समभाग मिश्रण में से 1 तोला चूर्ण दिन में दो बार खाने से असमय आनेवाला वृद्धत्व रुक जाता है।

💁🏻 दूसरा प्रयोगः आँवले एवं काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर उसका 1 से 2 ग्राम बारीक चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से असमय आने वाला बुढ़ापा दूर होता है एवं शक्ति आती है।

गेंहू के जवारे का रस

गेहूँ का ज्वारा अर्थात गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों की हरी-हरी पत्ती, जिसमे है शुद्ध रक्त बनाने की अद्भुत शक्ति. तभी तो इन ज्वारो के रस को “ग्रीन ब्लड” कहा गया है. इसे ग्रीन ब्लड कहने का एक कारणयह भी है कि रासायनिक संरचना पर ध्यानाकर्षण किया जाए तो गेहूँ के ज्वारे के रस और मानव मानव रुधिर दोनों का ही पी.एच. फैक्टर 7.4 ही है जिसके कारण इसके रस का सेवन करने से इसका रक्त में अभिशोषण शीघ्र हो जाता है, जिससे रक्ताल्पता(एनीमिया) और पीलिया(जांडिस)रोगी के लिए यह ईश्वर प्रदत्त अमृत हो जाता है.

गेहूँ के ज्वारे के रस का नियमित सेवन और नाड़ी शोधन प्रणायाम से मानव शारीर के समस्त नाड़ियों का शोधन होकर मनुष्य समस्त प्रकार के रक्तविकारों से मुक्त हो जाता है. गेहूँ के ज्वारे में पर्याप्त मात्रा में क्लोरोफिल पाया जाता है जो तेजी से रक्त बनता है इसीलिए तो इसे प्राकृतिक परमाणु की संज्ञा भी दी गयी है. गेहूँ के पत्तियों के रस में विटामिन बी.सी. और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

गेहूँ घास के सेवन से कोष्ठबद्धता, एसिडिटी , गठिया, भगंदर, मधुमेह, बवासीर, खासी, दमा, नेत्ररोग,म्यूकस, उच्चरक्तचाप, वायु विकार इत्यादि में भी अप्रत्याशित लाभ होता है. इसके रस के सेवन से अपार शारीरिक शक्ति कि वृद्धि होती है तथा मूत्राशय कि पथरी के लिए तो यह रामबाण है. गेहूँ के ज्वारे से रस निकालते समय यह ध्यान रहे कि पत्तियों में से जड़ वाला सफेद हिस्सा काट कर फेंक दे.

केवल हरे हिस्से का ही रस सेवन कर लेना ही विशेष लाभकारी होता है. रस निकालने के पहले ज्वारे को धो भी लेना चाहिए. यह ध्यान रहे कि जिस ज्वारे से रस निकाला जाय उसकी ऊंचाई अधिकतम पांच से छः इंच ही हो.

आप 15 छोटे -छोटे गमले लेकर प्रतिदिन एक-एक गमलो में भरी गयी मिटटी में ५० ग्राम गेहू क्रमशः चिटक दे, जिस दिन आप १५ गमले में गेहू डालें उस दिन पहले दिन वाला गेहू का ज्वारा रस निकलने लायक हो जायेगा. यह ध्यान रहे की जवारे की जड़ वाला हिस्सा काटकर फेक देंगे पहले दिन वाले गमले से जो गेहू उखाड़ा उसी दिन उसमे दूसरा पुनः गेहू बो देंगे.यह क्रिया हर गमले के साथ होगी ताकि आपको नियमित ज्वारा मिलता रहे.

गेहूं के जवारे में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |

लंबे और गहन अनुसंधान के बाद पाया गया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधों के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |
यहां तक कि इसकी मानवीय कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा प्रभाव देखा गया है |
गेहूं हमारे आहार का मुख्य घटक है | इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है | इस संदर्भ में तमाम महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं. अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. ए. विग्मोर ने गेहूं के पोषक और औषधीय गुणों पर लंबे शोध और गहन अनुसंधान के बाद पाया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधे के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |

एन्टी आक्सी डेंट से भरपूर —
यहां तक कि इसकी मानव कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एन्टीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा असर देखा गया है | यही नहीं, फोड़े-फुंसियों और घावों पर गेहूं के छोटे हरे पौधे की पुल्टिस ‘एंटीसेप्टिक’और ‘एंटीइन्फ्लेमेटरी’ औषधि की तरह काम करती है. डॉ. विग्मोर के अनुसार, किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी दूर करने में गेहूं के जवारे का रस किसी भी उत्तम टॉनिक से बेहतर साबित हुआ है |

प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक –
यह ऐसा प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक है जिसे किसी भी आयुवर्ग के स्त्री-पुरुष और बच्चे जब तक चाहे प्रयोग कर सकते हैं, इसी गुणवत्ता के कारण इसे ‘ग्रीन ब्लड’ की संज्ञा दी गयी है |
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण गेहूं को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया है. इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान रहता है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |
हरिद्वार स्थित ‘ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान’ के वैज्ञानिकों ने भी गेहूं की गुणवत्ता का लाभ जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए कई सरल और सस्ते प्रयोग किये हैं |

रोग प्रतिरोधक क्षमता –
इस संस्थान के शोध वैज्ञानिकों के अनुसार, गेहूं के ताजे जवारों (गेहूं के हरे नवांकुरों) के साथ थोड़ी सी हरी दूब और चार-पांच काली मिर्च को पीसकर उसका रस निकालकर पिया जाए तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि दूब घास सदैव स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग-बगीचों से ही लेना चाहिए |

संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं के जवारे उगाने का सरल तरीका भी बताया है. इसके लिए मिट्टी के छोटे-छोटे सात गमले लिये जाएं और उन्हें साफ जगह से मिट्टी से भर ली जाए. मिट्टी भुरभुरी और रासायनिक खाद रहित होनी चाहिए |

अब इन गमलों में क्रम से प्रतिदिन एक-एक गमले में रात में भिगोया हुआ एक-एक मुट्ठी गेहूं बो दें. दिन में दो बार हल्की सिंचाई कर दे. 6-7 दिन में जब जवारे थोड़े बड़े हो जाएं तो पहले गमले से आधे गमले के कोमल जवारों को जड़ सहित उखाड़ लें |

सुबह खाली पेट ले –
ध्यान रखें, जवारे 7-8 इंच के हों तभी उन्हें उखाड़ें. इससे ज्यादा बड़े होने पर उनके सेवन से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता. जवारे का रस सुबह खाली पेट लेना ही उपयोगी होता है |
ख्याल रखें कि जवारे को छाया में ही उगाएं. गमले रोज मात्र आधे घंटे के लिए हल्की धूप में रखें. जवारों का रस निकालने के लिए 6-7 इंच के पौधे उखाड़कर उनका जड़वाला हिस्सा काटकर अलग कर दें |
अच्छी तरह धोकर साफ करके सिल पर पीस लें. फिर मुट्ठी से दबाकर रस निकाल लें. ग्रीन ब्लड तैयार है |
इस रस के सेवन से हीमोग्लोबिन बहुत तेजी से बढ़ता है और नियमित सेवन से शरीर पुष्ट और निरोग हो जाता है.

बुढ़ापा दूर भगाये –
‘दूर्वा घास’ के बारे में आरोग्य शास्त्रों में लिखा है कि इसमें अमृत भरा है, इसके नियमित सेवन से लंबे समय तक निरोग रहा जा सकता है | आयुर्वेद के अनुसार, गेहूं के जवारे के रस के साथ ‘मेथीदाने’ के रस के सेवन से बुढ़ापा दूर भगाया जा सकता है |
इसके लिए एक चम्मच मेथी दाना रात में भिगो दें. सुबह छानकर इस रस को जवारे के रस के साथ मिलाकर सेवन करें |
इसके साथ आधा नींबू का रस, आधा छोटा चम्मच सोंठ और दो चम्मच शहद मिला देने से इस पेय की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है |
इस पेय में विटामिन ई, सी और कोलीन के साथ कई महत्वपूर्ण इंजाइम्स और पोषक तत्व शरीर को प्राप्त हो जाते हैं |

वृद्धावस्था को दूर भगाना हो तो जवारे का रस पियें

गेहूँ हमारे आहार का प्रमुख घटक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। अपने देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में गेहूँ की खेती होती है। अन्य अनाजों की अपेक्षा गेहूँ के दोनों के अतिरिक्त इसके छोटे – छोटे हरे ताजे – पौधे भी पोषण एवं रोगनाशक की दृष्टि से बहुत ही गुणकारी होते हैं। अनुसंधानकर्ता चिकित्सा विज्ञानियों ने इस संदर्भ में महत्वपूर्ण खोजें की हैं।
अपनी कृति ‘ हृाई सफर ‘ में अमेरिका की सुप्रसिद्ध चिकित्सक डाक्टर एन. विग्मोर ने गेहूँ की पोषक शक्ति एवं उसके औषधीय गुणों का स्वं पर किये गये अनुसंधानों एवं प्रयोगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनके अनुसार संसार का कोई ऐसा रोग नहीं जो गेहूँ के जवारे रस के सेवन से ठीक न हो सके। कैंसर जैसे घातक रोग भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में इसके प्रभाव से अच्छे होते पाये गये हैं। कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खाँसी, पीलिया, ज्वर , मधुमेह, वात व्याधि , बवासीर जैसे रोगों में भी गेहूँ के छोटे पौधों का रस लाभकारी सिद्ध होता है। इसके माध्यम डा. विग्मोर ने कितने ही कष्टसाध्य रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार किया और उन्हें स्वस्थ किया है।
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण ही गेहूँ को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया है। इसमें वे सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान होते हैं जो शरीर को स्वस्थ व तन्दुरुस्त बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं, यथा – प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल आदि। विश्लेषणकर्ताओं के अनुसार प्रति 100 ग्राम गेहूँ के आटे में नमी – 12.2 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 694 ग्राम, कैलोरी प्रोटीन – 12.1 ग्राम, वसा – 1.7 ग्राम, मिनरल्स – 2.7 ग्राम, रेशा – 1.09 ग्राम, कैल्शियम- 48 मि.ग्रा. फास्फोरस – 355 मि.ग्रा. , लोहा, 4.09 मि.ग्रा., कैरोटीन – 29 , थियामिन – 0.49 रिबोफ्लेविन – 0.17 मि.ग्रा. नियासिन 4.3 मि.ग्रा. और फोलिक एसिड – 0.12.1 मि.ग्रा. मात्रा में पाया जाता है।

वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने में गेहूँ के जवारे का रस किसी भी उत्तम टानिक से कम नहीं, वरन् अधिक ही उत्तम सिद्ध हुआ है। यह एक ऐसा प्राकृतिक टानिक है जिसे हर आयुवर्ग के नर – नारी जब तक चाहें प्रयोग कर सकते हैं। अंग्रेजी दवाओं – टानिकों का अधिक दिनों तक सेवन नहीं किया जा सकता, अन्यथा वे लाभ के स्थान पर नुकसान ज्यादा पहुँचाते हैं। परन्तु इस रस के साथ ऐसी कोई बात नहीं। पोषकता, गुणवत्ता एवं हरे रंग के कारण गेहूँ के पौधे के रस को ‘ग्रीन ब्लड’ की संज्ञा दी गयी है। गेहूँ के ताजे जवारे के साथ यदि थोड़ी – सी हरी दूब – दूर्बाघास एवं 2 – 4 दाने कालीमिर्च को पीसकर रस निकाला और उसका सेवा किया जाए तो पुराने से पुराना एलर्जिक रोग भी जड़ – मूल से नष्ट हो जाता है और शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होकर युवाओं जैसी स्फूर्ति आ जाती है। यहाँ ध्यान रखने योग्य विशेष बात यह है कि दूर्बाघास सदैव साफ-स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग, बगीचों, की ही प्रयुक्त की जानी चाहिए। इसे भी छोटे गमलों, क्यारियों, में गेहूँ की भाँति ही उगाया जा सकता है।

देर्वेहि अमृत सम्पन्ने शतमूले शंताकूरे। शतपातक संहर्वि शतमायुष्य वर्धिनी॥

अर्थात् दूर्वाघास में अमृतरस भरा है। इसके नित्य सेवन से सौ वर्ष तक निरोग रहकर जिया जा सकता है। प्राचीन ऋषियों ने इस सूत्र में दूब की रोग- निवारक व स्वास्थ्य – संरक्षक शक्ति का ही संकेत किया है।

गेहूँ के जवारे के रस के साथ – साथ यदि गेहूँ और मेथी दाने को चार – एक के अनुपात में, चार चम्मच गेहूँ व एक चम्मच मेथी दाना स्वच्छ पानी से धोकर एक गिलास में भिगो दिया जाए और 24 घंटे बाद उसका पानी छान कर पी लिया जाए तो वृद्धावस्था को कोसों दूर भगाया जा सकता है। इस जल में आधा नीबू का रस, एक चुटकी सोंठ चूर्ण व दो चम्मच शहद मिला देने से वृद्धावस्था दूर करने वाले विटामिन ई, विटामिन सी और कोलीन नामक तीनों तत्वों के साथ ही एन्जाइम्स, लाइसिन, आइसोल्यूसिन, मेथोनाइन जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्द्धक पौष्टिक तत्व भी शरीर को प्राप्त होते रहते हैं। यह पेय पाचक एवं शक्तिवर्धक होने से संजीवनी रसायन की तरह काम करता है। इसी के साथ यदि उक्त छने हुए गेहूँ व मेथी दोने को को कपड़े में बाँधकर अंकुरित कर लिया जाए और दूसरे दिन सुबह खाली पेट नाश्ते के स्थान पर खूब चबा – चबाकर सेवन किया जाए तो इससे न केवल पाचन सम्बन्धी विकार दूर होते हैं, वरन् शरीर भी हृष्ट-पुष्ट व बलिष्ठ बनता है। नीबू, कालीमिर्च व सेंधा नमक मिलाकर इसे स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।

जवारे का रसः बीमारी में अमृत एवं प्राकृतिक प्रतिरोधक शक्ति जगाने हेतु

गेंहूं के पौधे में ईश्वरप्रदत्त अपूर्व गुण है। हम लोग बारहों मास भोजन गेहूँ का प्रयोग करते हैं, पर उसमें क्या गुण हैं, यह हम नहीं जानते रोगनाशक हैं।
पिछली सदी में अमरीका की एक महिला डाक्टर एन. विगमोर ने गेहूं की शक्ति के सम्बन्ध में बहुत अनुसन्धान तथा अनेकानेक प्रयोग करके एक बड़ी पुस्तक लिखी है, जिनका नाम है Why Suffe? Answer…Wheat Grass Manna उन्होंने अनेकानेक असाध्य रोगियों को गेहूं के जवारे का रस देकर उनके कठिन से कठिन रोग अच्छे किये हंै। वे कहती है कि संसार में ऐसा कोई रोग नहीं है जो इस रस के सेवन से अच्छा न हो सके। कैंसर के ऐसे बड़े-बड़े रोगी उन्होेंने अच्छे किये हैं, जिन्हें डाक्टरों ने असाध्य समझकर जवाब दे दिया था और जो मरणप्रायः अवस्था में अस्पताल से निकाल दिए गए थे। यह ऐसी अदभुत हितकर चीज है। उन्होंने इस साधारण से रस से अनेकानेक भगंदर, बवासीर, मधुमेह, गठियाबाय, पीलियाज्वर, दमा, खांसी वगैरह के पुराने से पुराने असाध्य रोगी अच्छे किये हैं। बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने में तो यह रामबाण है। भयंकर फोड़ों और घावों पर इसकी लुगदी बाँधने से जल्दी लाभ होता है। अमेरिका के अनेकानेक बड़े-बड़े डाक्टरों ने इस बात का समर्थन किया है। अनेक लोग इसका प्रयोग करके लाभ उठा रहे हैं।

जवारे का रस के बनाने की विधि
आप सात बांस की टोकरी मंे अथवा गमलों मंे अच्छी मिट्टी भरकर उन मंे प्रति दिन बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया मंे अथवा कमरे या बरामदे मंे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
वह ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे और दो-तीन महीने मंे वह मरणप्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो जायेगी।
गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी उन्हें काम मंे लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः बारहों मास उगाया जा सकता है।

सावधानियाँ
रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
रस लेने के पूर्व व बाद मंे एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।
तीन घण्टे मंे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मंे कइयों को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है।
स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है।
कैलिफोर्निंया विश्वविद्यालय की शोध से प्रकट हुआ कि जवारे के रस में पी फोर डी वन नामक ऐसा ऐन्जाइम है जो दोषी डी एन ए की मरम्मत करता है। रक्त शोधन, यकृत से विषैले रयासनों को निकालने व मलशोधन मंे इसका बहुत योगदान है।डाॅ. हेन्स मिलर क्लोराॅिफल को रक्त बनाने वाले प्राकृतिक परमाणु कहते है। लिट्राइल से कैंसर तक को ठीक करने वाले तत्वों का पता लगा है। कोशिकाओं के म्यूटेशन को रोकता है। अर्थात् कार्सिनोजेनिक रसायनों जैसे बेन्जोंपायरीन को कम करता है। इससे कैंसर वृद्धि रूकती है। चीन में लीवर कैंसर इससे ठीक हुए है।
लगभग एक किलो ताजा जवारा के रस से चैबीस किलो अन्य साग सब्जियों के समान पोषक तत्व पाये जाते है।
डाक्टर विगमोर ने अपनी प्रयोगशाला मंे हजारों असाध्य रोगियों पर इस जवारे के रस का प्रयोग किया है और वे कहती हैं कि उनमें से किसी एक मामले मंे भी उन्हें असफलता नहीं मिली है।