पंचवटी वाटिका

पंचवटी वाटिका

पीपल, बेल, वट, आंवला व अशोक ये पांचो वृक्ष पंचवटी कहे गये हैं। इनकी स्थापना पांच दिशाऒं में करनी चाहिए। पीपल पूर्व दिशा में, बेल उत्तर दिशा में, वट (बरगद) पश्चिम दिशा में, आंवला दक्षिण दिशा , आग्नये कोण में अशोक की तपस्या के लिए स्थापना करनी चाहिए । पांच वर्षों के पश्चात चार हाथ की सुन्दर वेदी की स्थापना बीच मॆं करनी चाहिए । यह अनन्त फलों कॊ देने वाली व तपस्या का फल देने प्रदान करने वाली है।

पंचवटी का महत्व—
1. औषधीय महत्व
इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण है । आंवला विटामिन “c” का सबसे समृद्ध स्त्रोत ह एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महौषधि है। बरगद का दूध बहुत बलदायी होता है। इसके प्रतिदिन प्रयोग से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। पीपल रक्त विकार दूर करने वाला वेदनाशामक एवं शोथहर होता है। बेल पेट सम्बन्धी बीमारियों का अचूक औषधि है तो अशोक स्त्री विकारों को दूर करने वाला औषधीय वृक्ष है।
इस वृक्ष समुह में फलों के पकने का समय इस प्रकार निर्धारित है कि किसी न किसी वृक्ष पर वर्ष भर फल विधमान रहता है। जो मौसमी रोगों के निदान हेतु सरलता से उपलब्ध होता है। गर्मी में जब पाचन सम्बन्धी विकारों की प्रबलता होती है तो बेल है। वर्षाकाल में चर्म रोगों की अधिकता एवं रक्त विकारों में अशॊक परिपक्व होता है। शीत ऋतु में शरीर के ताप एवं उर्जा की आवश्यकता को आंवला पूरा करता है
2. पार्यावरणीय महत्व
बरगद शीतल छाया प्र्दान करने वाला एक विशाल वृक्ष है। गर्मी के दिनों में अपरान्ह में जब सुर्य की प्रचन्ड किरणें असह्य गर्मी प्रदान करत हैं एवं तेज लू चलता है तो पचवटी में पश्चिम के तरफ़ स्थित वट वृक्ष सघन छाया उत्पन्न कर पंचवटी को ठ्न्डा करत है।
पीपल प्रदुषण शोषण करने वाला एवं प्राण वायु उत्पन्न करन वाला सर्वोतम वृक्ष है
अशोक सदाबहार वृक्ष है यह कभी पर्ण रहित नहीं रहता एवं सदॆव छाया प्रदान करत है।
बेल की पत्तियों, काष्ठ एवं फल में तेल ग्रन्थियां होती है जो वातावरण को सुगन्धित रखती हैं।
पछुआ एवं पुरुवा दोनों की तेज हवाऒं से वातावरण में धूल की मात्रा बढती है जिसकॊ पुरब व पश्चिम में स्थित पीपल व बरगद के विशाल पेड अवशोशित कर वातावरण को शुद्ध रखते हैं।
3. धार्मिक महत्व
बेल पर भगवान शंकर का निवास माना गया है तो पीपल पर विष्णु एवं वट वृक्ष पर ब्रह्मा का। इस प्रकार प्रमुख त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पंचवटी में निवास है एवं एक ही स्थल पर तीनो के पूजन का लाभ मेलता है।
4. जैव विविधता संरक्षण
पंचवटी में निरन्तर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जन्तुऒं के लिए सदैव भोजन उपलब्ध रहता है एवं वे इस पर स्थाई निवास करते हैं। पीपल व बरगद कोमल काष्टीय वृक्ष है जो पक्षियॊं के घोसला बनाने के उपयुक्त है ।
हमें संकल्प लेना चाहिये कि अपने जीवनकाल में एक पंचवटी स्थापित ज़रूर करे और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को प्रेरित करे । इस वर्ष राजस्थान में गर्मा ने १२५ वर्षों का रिकोर्ड तोड़ दिया , तापमान 52 डिग्री हो चुका है । अभी भी नहीं संभले तो फिर बहुत देर हो जायेगी और पृथ्वी को आग का गोला बनते देर नहीं लगेगी । तो आपसे अपील है कि आज से अभी से शुभ कार्य की शुरूवात करे ।

गुणकारी अमृत फल एवं दिव्य औषधि ‘बेल’

बेल बेल रस
आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है। यह एक ऐसा फल है जिसके पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं। बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है।
उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।
इसके कुछ घरेलू इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है –
1. आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
2. सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
3. रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।
4. गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।
5. पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।
6. पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है। यह रस शीतलता देने वाला और वीर्यवर्धक होता है ।
7. इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।
8. बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।
9. भूख कम हो, कब्ज हो, जी मिचलाता हो तो इसका गूदा पानी में मथ कर रख लें और उसमें चुटकी भर लौंग, काली मिर्च का चूर्ण, मिश्री मिला कर कुछ दिन लेने से भूख बढ़ेगी, कब्ज की शिकायत खत्म हो जाएगी।
10. सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ। गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा।
11. मोच अथवा अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें। दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा।
12. बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं।
13. पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।
14. बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।
15. बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।
16. बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।
17. छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
18. कभी दस्त लगे, कभी कब्ज हो जाए तो यह स्थिति बड़ी कष्टदायक होती है। ऐसे में पके बेल को शर्बत या पानी में मथ कर कुछ दिन लगातार लेने से लाभ होता है।
19. किसी प्रकार के घाव पर इसके पत्तों को पीस कर बांधने से घाव जल्दी भरता है।
20. खूनी बवासीर में इसका चूर्ण मिश्री मिला कर एक सप्ताह तक पानी में लेने से लाभ होता है।
21. बलवृद्धि के लिए इसका चूर्ण और मिश्री दूध में मिला कर लेने से लाभ होता है। इसे कुछ दिन लगातार लेने से खून की कमी, शारीरिक दुर्बलता एवं धातुदोष दूर होते हैं।
22. इसकी छाल का काढ़ा बना कर शहद मिला कर पीने से किसी भी तरह की उल्टी से राहत मिलती है।